Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपालिक
वणभूया परवाइपमरणा आयारधरा चोबसपुवी दुवाल संगिणो
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तथैव तेऽपि मुनिवरा सम्यग्ज्ञानादिग्रापूणामति । पुनस्ते कीदृणा ' इयाह- कृषि - यावणभूया' कुत्रिकाऽऽपणभूता = कुना=वर्गमयेपातालभुमीना त्रिक कुनिक, तारयात् तद्व्यपदेश इति कृत्वा तत्र स्थित वस्त्वपि कुत्रिकमुष्यते, कुनिकस्य आपण कुत्रिकापण ! देवाधिष्ठितत्वेन स्वर्गमर्त्यपाताललोकत्रय सभविवस्तुसम्पादकः इत्यर्थ, तद्भूता समीहितार्थसम्पादनलब्धियुक्तत्वेन तत्तुल्या इति भाव | 'परवाइपमणा' परवादिप्रमर्दना - परवादिना शाक्यादीना मतनिराकरणेन विजेतार इत्यर्थ । 'आयारधरा' भाचारधरा - आचाराङ्गसूत्रस्य धारका यावद्विपाकसूत्रधरा, 'चोरसपुत्री' चतुर्दशपूर्विण नतुर्दश पूर्वाणि विभन्ते येषां ते चतुर्दशपूर्विंग पड्गुणहानिवृद्धिरूपस्थानमस्थिता परस्पर भवति न्यूनाधिक्येन, तथाहि य कचित् सकलाभिलाप्यवस्तुवेदितया चतुर्दशपूस उत्कृष्ट ततोऽये सूत्रार्थतदुभयरूपतार तम्या चतुर्दशपूर्वरा । 'दुवालसगिणे ' द्वादशाहिन -दिशानि-अङ्गानि आचाराङ्गादोनि सन्ति है उसी प्रकार ये साधुजन भी सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्ज्ञान आदि विविध गुणरूप रत्नों से भरपूर थे । ( कुत्तियावणभूया ) ये कुनिकापण तुल्य थे । जिस आपण (दुकान) में स्वर्ग मर्त्य, पाताल - तीनों लोक की वस्तुएँ रहती है, उसको 'कुत्रिकापण' कहते हैं । उस कुत्रिकापण से सभी अभिलपित वस्तुएँ मिलती है । उसीप्रकार ये अभिलषित तीनों लोक के पदार्थों के सम्पादन करने की लब्धियों से युक्त थे । अत एव कुत्रिकापण- नुल्य थे । ( परवाइपमद्दणा ) परवादियों के मत को निराकरण करने से ये उनके विजेता थे । ( आयारधरा ) आचाराग सूत्र से लेकर विपाकसूत्रतक के आगमों के ये धारक थे । ( चोदसपुच्ची) चौदहपूर्वी के ये पाठी थे | इस प्रकार ये सब के सब ( दुबालस गिणी) द्वादशाग के वेत्ता थे । (समत्त - કિમતી રત્નાથી ભરપૂર હોય છે તેમ એ સાધુજનેા પણ સમ્યગ્દશન તેમજ सभ्य ज्ञान आदि विविध शुशुश्च रत्नोथी लरपूर हुता, (कुत्तियावणभूया) - તેઓ કુત્રિકાપણુ જેવા હતા જે આાપણ (દ્વાન)માં સ્વર્ગ મત્ય અને પાતાળ ત્રણે ઢાકાની વસ્તુએ રહેતી હાય તેને ‘કુત્રિકાપણું' હે છે તે કુત્રિકાપણમા બધી ઈચ્છિત વસ્તુઓ મળે છે, તેવી રીતે તેઓ પણ ત્રણે લેાકુના ઈચ્છિત, પદાર્થો મેળવવાની લબ્ધિઓવાળા હતા એથી તેઓ કુત્રિકાપણુ જેવા હતા (आयारधरा) मायारागसूत्री सईने विषासूत्र सुधीना आगभाना तेथेो धार हृता (बोहसपुत्री) यौह पूर्वोना तेखो लघुनाश उता से अजरे थे तभाभे तभाभ (दुबालसगिणा ) द्वादशागना ज्ञाता देता (समत्तगणिपिडगधरा ) समस्त
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