Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ओपपातिकसूत्रे -से त इत्तरिए। से किं त आवकहिए 'आवकहिए दुविहे पण्णत्ते, 'त जहा-पाओवगमणे य १ भत्तपच्चरखाणे यससे कि तं पाओ. कथा-'मनुष्योऽयम्' एतद्रूपा सा यानकथा, ता भव यावरुथिकम्-यावजीवनमित्यर्थ , तद् 'दुविहे पण्णत्ते' द्विविध प्रनप्तम् । 'त जहा' तद्यथा-'पाओवगमणे य भत्तच
खाणे य' पादपोपगमन च भक्तप्रत्याख्यान च, तन-पादपस्येव वृक्षस्योपगमनम्अस्पन्दतया-निश्चलतयाऽप्रस्थान पादपोपगमनम्-चतुर्विधाऽऽहारपरित्यागेन गरारप्रतिक्रियापर्जनेन च वृक्षवन्निश्चलावस्थानमित्यर्थ । 'से कि त पाओवगमणे'-अथ कितत्पाद पोपगमनम् ?-पादपोपगमन कीदृशम् । अत्राह-'पाओवगमणे दुरिहे पण्णत्ते' पादपोप्रकार का उसके तप करने वाले के साथ व्यवहार चलता रहे तबतक जो नत किया जाय वह यावत्कथिक है-जीवनपर्यत आरापित अनशन व्रत यावकयिक है । ( से मि त आवकहिए ?) यावत्कयिक तप कितने प्रकार का है ? उत्तर-(आवकहिए दुविहे पण्णत्ते) यह तप दो प्रकार का है-( त जहा) वह टस प्रकारसे (पाओवगमणे य भत्तपञ्च
खाणे य) पादपोपगमन और दूसरा भक्तप्रत्यारयान । जिसम कट वृक्ष की तरह निश्चल हो कर स्थिति रहे वह पादपोपगमन है-चारो प्रकार के आहार के परित्याग से एव शरार की शुश्रूषा आदि क्रियाओं के परित्याग से कटे वृक्ष की तरह निश्चल हो जाना इसका नाम पादपोपगमन है। (से किं त पाओवगमणे?) पादपोपगमन कितने प्रकार का है ?, (पाओवगमणे दुविहे पण्णत्ते )यह पादपोपगमन स्थारा दो प्रकार का हे, ( त जहा ) वह इस ચિકની મતલબ છે, જ્યાં સુધી “ આ મનુષ્ય છે” એ પ્રકારને તેના–તપ કરનારના સાથે વ્યવહાર ચાલતું રહે ત્યા સુધી જે વ્રત કરવામાં આવે તે यावतथि -वनपय त माराधित मनशन त यापलथि४ छ (से किं त आवकहिए ) या४थि त उटसा प्रश्न छ ? उत्त२ (आपकहिए दुविहे पण्णत्ते ) । त५ मे प्रा२नु ( त जहा) ते ॥ ॥२ छ (पाओर गमणे य भत्तपच्चस्साणे य) (१) पाहपोपगमन मने भी मत ધ્યાન જેમ કાપેલા વૃક્ષની પેઠે નિશ્ચલ જેવી સ્થિતિ રહે તે પાદપપગમન છે-ચારેય પ્રકારના આહારને ત્યાગ કરીને તેમજ શરીરની બેવા-શુશ્રષા આદિ ક્રિયાઓના ત્યાગ કરીને કાપેલા વૃક્ષની પેઠે નિશ્ચય થઈ જવું તેના नाम पायापामन छ (से किं त पाओवगमणे?) पाहपापगमन सारना ? (पाओरगमणे दुविहे पण्णत्ते) मा पापागमन मथा। मे प्रकार