Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
१८४
भोपपातिकबरे
। मूलम्-तेण कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ
महावीरस्स अंतेवासी बहवे अणगारा भगवंतो, इरियासमिया त्वाद् अविभादिवचनत्वाचेति भाव । निगा इव अवितह वागरमाणा' जिना इच अवितथ व्याकु गा -जिनवद् याथातथ्यो-यद्वस्तु यादृगेप तथा कथयत 'सजमेण' सयमेन सायद्ययोगरिरमणलक्षणेन तपसा' तपसा 'अप्पाण भावेमाणा विहरति' आत्मान भावय तो विहरति ॥ सू० २६॥ 1 टीका-'तेण कालेणं' इत्यादि। तस्मिन् काले तस्मिन् समये अमगस्य ___ भगतो महावारस्य अतेगासिनो वहवोऽनगारा , 'भगवतो' भगत -पयमशोभावन्त , 'इरियासमिया' ईयासमिता ईरण-गमनमीर्या, तस्या समिता =पम्यक्प्रवृत्ता, गमने (जिणा इस अवितह वागरमाणा) जिन-सर्वज-अमु जिस प्रकार यथार्थ की प्ररू पगा करते है उसी प्रकार ये भी अनितथ-जो वस्तु जैसी थी उसी तरह से , उसकी 'व्याख्या करने वाले थे। (सजमेण तवसा अप्पाण भावमाणा विहरति) ये सब के - सब साधुजन सावद्ययोगविरमणलक्षणरूप १७ प्रकार के सयम से एव अनगनादि १२ प्रकार के तप से आत्मा को भावित करते हुए प्रभु के साथ विचरते थे ।।मू० २६॥
'तेण कालेण तेग समएण' इत्यादि---
( तेण कालेण तेण समएण) उस काल और उस समय में ( समण स्स भगवओ महावीरस्स) श्रमण भगवान् महावीर के (अतेवासी) पास में रहनेवाले ( वहवे अणगारा भगवतो) सभी अनगार भगवान (इरियासमिया ) ईर्यासमिति से युक्त थे, अर्थात् अन्य जावों की किसी भी प्रकार से विराधना न
सर्वज्ञाता (जिणा इव अवितह वागरमाणा) जिन-स-प्रभु प्रारे -- યથાર્થની પ્રરૂપણ કરે છે તે જ પ્રકારે તેઓ પણ અવિતથ-જે વસ્તુ જેવી
उती तवी शतधी तेनी व्याच्या ४२ना। उता (सजमेण तवसा अपाण भावे माणा विहरति) तमे। तमाम साधुरना सावधयोग विरमा ३५ १७ પ્રકારને સયમથી તેમ જ અનશન આદિ ૧૨ પ્રકારના તપથી આત્માને ભાવિત કરતા કરતા પ્રભુની સાથે વિચરતા હતા (સૂ૦ ૨૬)
" तेग कालेण तेण समएण" छत्याह
(तेण कालेण तेण समएण) ते जण मन त समयमा (समणस्स भगवओ महावीररस) श्रम भगवान महावीरना' (अतेवासी) पासे २२वाया। (ब्रहवे अणगारा भगवतेो) धए। मन॥२ भगवान (इरियासमिया ध्यासमिति