Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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স্ত্রীলিঙ্ক
रियस्स धम्मोवदेसगस्स, वदामि ण भगवत तत्थ गय इहगए, पासउ मे भगव तत्थगए डहगयति-कह बदड णमसड, वदित्ता धर्माचार्यत्वमेव प्रकटीकरोनि-धम्मोस्टेसगरस' धोपटेशकाय, युनचारित्रणरूप धर्मप्ररूपकाय, पदामि ण भगरत तत्यगय दगए वद गलु भगरत तगतमिहगत यह गत चम्पानगरास्थितोऽहम् कोमिक तरगत-चम्पा नगराममाप-ग्राम स्थित भगर त महावीर, वन्दे-पूर्वोक्तस्तुला स्तुतिनिपय करोमि । 'पासउ मे भगा तत्थगए दागय तिर१' पश्यतु मा भगनान् तरगत दहगतमिति कृपा-मनपात् तरगतो-दूरस्थितो भगवान् इहगत व्यवधानन स्थित मा पश्यतु इति पाउत्युस्वा-वह णममट, वदित्ता णमसित्ता' वदते-स्तौति, नमस्यति-पञ्चालनमनपूर्वक प्रगमति, वन्तिमा नमस्थिना 'धम्मोवदेसगस्स' भगान वार श्रुतचारित्ररूप धर्मका उपदेया करते हैं, इसलिये वे धर्मोपदेशक है, अत ऐसे वारप्रभु क लिये नमत्कार हो। कोगिक गजा इस प्रकार कहकर प्रमुवार को परोक्ष वदन करते है फि-( तत्थगय इहगएत्ति कटु वदइ णमसइ) वे वीरप्रभु कि जिन्हें मै टस समय नमस्कार कर रहा हू, यद्यपि मरे प्रयक्ष नहीं है तथापि वे इस चपानगर। के पास के ग्राम मे निराजमान है और मै यहा पर ह, अत यहा चपानगरो मे रहा हुआ भै उपनगरग्राम म विराजमान वार प्रभु को नमस्कार करता है। " पासउ मे भगव तत्थगए दहगय" व प्रभु वहा पर विराजमान होते हुए व्यवधान से स्थित मुझे अपने ज्ञानरूपा नेत्र द्वारा देते। इस प्रकार कहकर कोगिक राजाने प्रभु को वदन किया एत्र नमस्कार कियापचागनमनपूर्वक नमस्कार किया । (बदित्ता नमसित्ता सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे
छ भने १ पयार्य हवामा आवे “धम्मोवदेसगस्म" मावान મહાવીર શ્રુતચારિત્રરૂપ ધર્મના ઉપદેશક છે તેથી તેઓ ધમોપદેશક છે, માટે એવા મહાવીર પ્રભુને નમસ્કાર હો કેણિક રાજા આ પ્રકારે કહીને प्रभु पीरने पक्ष पहन ७२ ७ (तथगय इहगएत्ति कट्ट वदइ णमसइ) તે વીર પ્રભુ કે જેમને હુ આ અમને નમસ્કાર કરી રહ્યો છું તે છે કે મને પ્રત્યક્ષ નથી તે પણ તેઓ આ ચ પાનગરીની પાના ગામમાં છે અને હ અહ છુ, આથી હું અહી ચ પાનગીમા રહીને ઉપનગર ગામમાં વિરા
भान पीर प्रभुने नभाडा२ -३ पासउ मे भगव नत्थगए इहगय ] प्रभु ત્યા વિરાજમાન હોવા છના દૂર રહેલા એવો મને પિતાના જ્ઞાનરૂપી નેત્રદ્વારા જુએ આ પ્રકારે કહીને તેણિક રાજાએ પ્રભુને વદન થા,