Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
पीयूषयपिणी-टीका सु २५ भगवदन्तेयामियर्णनम
१७३
-
मूलम्-तेणं कालेण तेण समएणं समणस्स भगवओ महावीर - स्स अंतेवासी वहवे थेरा भगवंता जाडसपण्णा कुलसंपण्णा वलसंपण्णारूबसपण्णा विणयसंपण्णाणाणसंपण्णा दसणसंपण्णा
टीका-'तेण कालेण' इत्यादि । तस्मिन कारे तस्मिन् समये अमणस्य भगवता महावीरस्य 'अतेवासी' अतेनासिन -गिप्या वहव स्थविरा = चिरतरकालपालितश्रामण्यपर्याया, भगवन्त =सयमशोभाशालिन, एपा विशेषगान्याह-'जाइसपण्णा' जातिसम्पन्ना उत्तममातृरुवायुक्ता , एवम् 'कुलसपण्णा' कुलसम्पना -श्रेष्ठपैकवशयुक्ता , 'पलसपण्णा' वलसम्पना --चल--महननसमुत्थित पराक्रम , तेन सम्पन्ना - युक्ता , 'स्वसपण्णा' रूपसम्पना -रूपम्-आकृति -सुन्दराऽऽकारस्तेन युक्ता । 'विणतथा बारह प्रकार के तप से आत्मा को भापित करते हुए विचरते थे ॥ मू० २४ ॥
'तेण कालेण तेण समएण' इत्यादि.
(तेण कालेण तेण समएण) उसकाल उस समय मे (समणस्स भगवओ महागौरस्स अतेवासी वहवे थेरा भगवतो) श्रमण भगवान् महावीर के अन्तेपासी-शिष्य अनेक स्थविर भगवन्त थे । दीक्षापयाय से युक्त एव धर्म से प्रचलित को पुन धर्म मे स्थिर करनेवाले को स्थविर कहते हैं। सयमयोभासे जो युक्त हो उन्हे 'भगवन्त' कहते है। ये (जाइसपण्णा) जातिसपन्न-उत्तममातृवश के थे, और (कुलसपण्णा) कुल-- सम्पन-उत्तमपितृवश के थे। (वलसपण्णा) सहनननामकर्मसे प्राप्त वल से विशिष्ट थे। (रूबसपण्णा) सुन्दर आकृतिवाले थे। (विणयसपण्णा)जिससे अष्टविध कर्ममल મથી તથા બાર પ્રકારના તપથી આત્માને ભાવિત કરતા વિચરતા હતા ( ૨૪)
' तेण कालेण तेण समएण' त्यादि
(तेण कालेण तेण समण्ण) Astel त समयमा (समणस्स भगवओ महागीरस्स अतेवासी बहवे थेरा भगवतो) श्रम समपान् भडापीरना અતેવાસી-શિષ્ય અનેક સ્થવિર ભગવતે હતા ધર્મથી ચલાયમાન થતા સાધુઓને કરીથી ધર્મમાં સ્થિર કરવાવાળાને સ્થવિર કહે છે જે સયમशालावा हाय तेभने मापत ४ छ तसा (जाइसपण्णा)
तिस पन्न-उत्तम भातृशनाता, मने (पुरसपण्णा) समपन्न-उत्तम पितृप शना इता (वल्सपण्णा ) सनननाभभथा प्रात श्येद सप3 विशिष्ट इता (रूपसपण्णा) सुह२ मातिपात (निणयसपण्णा) नाथी