Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पपातिक
चरित संपण्णा लज्जासपणा लाघव संपण्णा ओयंसी तेयंसी यसपण्णा' विनयसम्पन्ना - विनीयतेऽपनीयते- सालेशकारकमप्टनि कर्म येन स विनयअभ्युत्थानादि - गुस्सेवालक्षण तेन युक्ता, 'णाणसपण्णा' नासपन्ना, ज्ञान - श्रुतचारिनलक्षण तेन युक्ता, 'दसणसपण्णा' दर्शनसम्पन्ना दर्शन- सम्यरून तेन युक्ता 'चरितसपण्णा' चरिनसम्पन्ना चरिन समितिगुप्यादिक तेन युक्ता, 'लज्जासपण्णा' लज्जा-सम्पन्ना लज्जा -सयमनिराधनाया हृदयसकोचरूपा तया युक्ता, 'लाघवसपण्णा' लाघनसम्पन्ना लाघव द्रव्यता ऽल्पोपधिता, भावता गौरवनयत्याग - तेन युक्ता, 'ओयसी' ओजस्विन, ओज - मानसी शक्तिस्तद्वन्त, 'तेयसी' तेजस्विन - तेज अन्तर्वहिर्देदीप्यमान तेजोलेश्यादि वा तद्वत्त, 'वच्चसी' वचस्विन, वच आदेयवचन - सौभाग्याद्युपेतमेषामस्ताति ते वचस्विन, अपनीत - नष्ट होता है वह विनय हे, ऐसे विनय से युक्त थे । गुरुओं के आने एव जाने आदि पर सडे होना इत्यादिक क्रियाएँ सन विनय के ही अन्तर्गत है । ( णाणसपण्णा) विशिष्टज्ञान से संपन्न थे । ( दसण-सपण्णा) विशिष्टदर्शनसे - सम्यक्त्व से सपन्न थे । (चरितसपणा ) समिति -- गुप्ति - आदिरूप चारिन से सपन्न थे । ( लज्जा सपन्ना) सयमविराधनामे जो स्वाभाविक हृदयका संकोच उसे लजा कहते हैं, उससे वे युक्त थे । ( लाघत्रसपण्णा) अप - उपधिरूप द्रव्यलाघर एव तीन गौरवका परित्यागरूप भावलाधव से युक्त थे । (ओयसी) ये ओजस्वी थे, अर्थात् तप और सयम प्रभाव से युक्त थे । (तेयसी) ये तेजस्वी थे, अर्थात् भीतर और बाहर देदीप्यमान थे, अथवा द्रव्यभावरूप तेजोलेश्या आदिसे युक्त थे । ( वचसी) ये आदेयवचन से, અષ્ટવિધ કમલ અપનીતનષ્ટ થાય છે તેને વિનય કહે છે એવા વિનયથી યુક્ત હતા ગુરૂએ આવે તેમ જ જાય ત્યારે ઉભા થવુ વિગેરે ક્રિયાઓ अधी विनयनी अतर्गत छे ( णाणसपण्णा) विशिष्टज्ञानवाला देता ( दसणसपण्णा) विशिष्ट दर्शनथी-सभ्यत्वथी सपन्न हुता ( चरितसपण्णा ) समितिशुप्ति-माहि३य यात्रिथी सपन्न हुता ( लज्जासपण्णा) सयभविराध નામા જે સ્વાભાવિક હૃદયના સોચ થાય તેને લજ્જા કહે છે તેનાથી યુક્ત ता ( लाघनसपणा ) मय - उपधिय द्रव्यसाधव तेभन भागु गौरखना परित्याग३थ लावलाघवथी युक्त हता ( ओयसी) तेथे गोस्वी इता, अर्थात्-तथ ाने सयभना प्रभाववाजा हता (तेयसी ) तेथे तेजस्वी हुता અર્થાત્ અદર અને બહાર દેદીપ્યમાન હતા, અથવા દ્રવ્યભાવરૂપ તેજોલેશ્યા माद्दिवाजा हता ( बञ्चसी) तेथे आहेयवथनवाजा, अथवा तप सयभना
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