Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पीयूपयपिणी-टीका सू २३ भगवदन्तेपासिवर्णनम णिचय-परियाल-फिडिया परवड-गुणा-डरेगा इच्च्यिभोगा सुहसंपललिया किपागफलोवम च मुणिय विसयसोक्ख, जलस्फुटिना , तत्र धनानि-गगिम-धग्मिादानि, धान्यानि-याच्यादीनि तेषा निचया रागय , वह्वश्चामा धनधान्यभिचयाथ, परिवारासीटामादिपरिकरा , ते स्फुटिता प्रकाशिता , 'नरवइ-गुणाहरेगा' नरपति-गुणा-तिरेका , नरपतिगुणविभापिलासादिभिरतिरेक आधिक्य येपा ते तथा, 'इच्छियभोगा' इप्मितमोगा -इन्मिता -वाञ्छिता भोगाभुयन्त इति भोगा गटरूपान्यो विपया येपा ते तथा, परमनिलामिन , 'मुहसपललिया' मुग्यसम्प्रदरिना -मुसेन-अनुकूल वेदनायेन-शुभपरिणामोपार्जितानुकुलगदानिजनकपुण्यपुन्नेन सम्प्रलालिता -सम्यक् वर्धिता , एवविधा पूर्व मुग्मिनोऽपि प्रत्रजिता , किं कया प्राजिता इत्याह-'किंपागफलोवम च' दयादि । किम्पास फलोपम-किंपाको वृक्षवियपस्तफनुन्यम्, किम्पारुफल दर्शने आस्वादे च मनोरम परिणामे प्रागहारक भाति तद्वन्त्यिर्थ । 'विसयसोक्स' विपयसौप्यम्-विपयाणा-पदस्पयादाना सौग्य सुख 'मुणिय-जाना, च-पुन 'जल-चुन्य-समाण' जल चुबुढ–समादामीनाम आदि परिवार समुदाय से राजसी ठाठ वाले थे, जो वाञ्छित गढ-- रूपातिक विषयों मे तल्लीन थे, परम विलासी थे, एव पुण्य के पुज से हा जिनका मानों लालन-पालन होता रहता था। (किंपाक-फलो-वम च मुणिय विसयसोशव जलगुन्युय-समाण कुसग्ग-जल-बिंदु-चचल जीविय य णाऊण) उन्होंने क्या समझफर के दाक्षा धारण की । इस प्रन का समाधान करते हुए सूत्रकार कहते है उन्होंने यह समझा कि ये वैपयिक सुख मिपाकफलके समान परिणाम मे अनिष्टकारक है, और यह मानवजाउन पाना के वुलगुले के समान क्षणभगुर है, एव कुश के अग्र पर रहे हुए जल के बिन्दु के समान चचल है ઠાઇવાળા હતા, જે મનવાંછિત શબ્દરૂપ આદિક વિષયમાં તલ્લીન હતા, બહુજ વિલાસી હતા, તેમજ પુણ્યના ઢગલાથી જ જાણે જેમનું લાલન પાલન થતુ २तु तु (किंपाग-फलो-चम च मुणिय सियसोरस जल-जुन्युय-समाण कुस ग-जल-निंदु-चचल जीनिय य णाऊण) तसा से शु समलने वीक्षा पार ॥ હતી ? એ પ્રશ્નનું સમાધાન કરતા સૂત્રકાર કહે છે તેઓ એમ સમજ્યા કે આ વિષયસુખ દિપાવલની પેઠે પરિણામે અનિષ્ટકારક છે, અને આ માનવ જીવન પાણીના પરપોટાની પેઠે ક્ષણભંગુર છે, તેમજ કુરાના છેડા પર રહેલા पानापानी पेठे यस छ सेभ ela ( अद्धवमिण रयमिव पडग्ग