Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिकसूत्रे
निवेसेड, निवेसित्ता ईसिं पच्चुष्णमइ, पच्चुण्णमित्ता कडगतुडिय-थंभियाओ भुयाओ पडिसाहरड, पडिसाहरिता करयल जावक एवं वयासी || सू १९ ॥
निवेसेड' मूद्रान धरगितले निवेशयति-निजमस्तक भृमिसलग्न करोति । 'निवे सित्ता' निवेश्य, 'ईसि पन्चुष्णमड' ईपत् प्रयुनमति - अपनी मृतकायो भनति, 'पन्चुण्ण मित्ता' प्रयुन्नम्य-अन्यनश्री भूतका यो भूवा 'कडग - तुडिय - भियाओ भुयाओ पडिसाहरइ' कटकत्रुटितस्तम्भितौ भुजौ प्रतिमहति, कटकत्रुटिताभ्या कण-मुजरक्षकाभ्या स्तम्भितौ स्तम्भरूपौ यौ भुजौ तौ प्रतिसहरति- उर्ध्वं नयति- उत्थापयती यर्थ, 'पडिसाहरिता' प्रतिसहृत्य – उत्थाप्य, ‘करयल जाव कट्टु ' करतल यावत् कृचा, अत्र यावच्छन्देन परिगृहीत- परस्पर समिलित गिरआवर्तं मस्तकेऽञ्जलिं कृत्वेति बोध्यते, 'एव वयासी' एव = वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत् ॥ सू० १९ ॥
मुद्धाण धरणितलसि निवेसेइ ) तीननार अपने मस्तक को जमीन पर झुकायाजमीन से माथे को लगाया । ( निवेसित्ता ईसिं पच्चुण्णम ) लगाने के बाद फिर ये थोडे से उठे, (पच्चुण्णमित्ता कडग-तुडिय थभियाओ भुयाओ पडिसाहरइ ) उसके पश्चात् इन्होंने अपने दोनों हाथों को कि जो ककण एव भुजरक्षक अल्कारों से स्तम्भित थे, उँचा किया, ( पडिसाहरित्ता करयल - जाब - कट्टु एव वयासी ) ऊँचे करने के बाद फिर ये मस्तक पर अजलिपुट रख कर इस प्रकार बोलेभावार्थ —— संदेशहर से प्रभु के आगमन की वार्ता सुनकर कोणिकराजा मारे अतिशय आनन्द के कारण उल्लसित हो गये । इस समाचार को सुनते ही ये रोमाञ्चित हो उठे । कमल के समान मुख आनदातिरेक से खिल उठा। नयनों ने चोताना भस्तउने भीनयर नभाष्यु नभीनने भाथु भडाग्यु ( निवेसित्ता ईसिं पच्चुण्णमइ ) डाउथा पछी तेथे ४२रा उठया ( पच्चुण्णमित्ता कडग तुडिय - थभियाओ मुयाओ पडिसाहरइ ) त्यार पछी तेथे पोताना भन्ने हाथ કે જે ક કણ તેમજ કડા ભુજરક્ષક વગેરે અલ કારાથી સ્તભિત હતા તે G या ४ ( पडिसाहरित्ता करयल जान कद्दू एव क्यासी) उथा हरीने पछी તેઓએ મસ્તક ઉપર અજલિપુટ રાખીને આ પ્રમાણે કહ્યુ.
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ભાવા—સ દેશવાહદ્વારા પ્રભુના આગમનના સમાચાર સાભળીને કાણિક શા અતિશય આનદ થવાના કારણે ઉલ્લાસમા આવી ગયા એ સમાચાર સાભળતા જ તેઓ માચિત થઈ ગયા. કમલની પેઠે મુખ આન દના