Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पीयूपपणी टीका सृ १८ भगवदुपनगरग्रामागमनवृत्तान्त निवेदनम १०९ णं देवाप्पिया दसण पीहंति, जस्स ण देवाणुप्पिया दसण पत्थति, जस्स पण देवाणुपिया दसणं अभिलसति, जस्स ण देवाणुअप्राप्त प्राप्तुमिच्छन्ति 'जस्स खलु देवाणुप्पिया दमण पीहति ' ह देवानुप्रिया । यस्य भगवत श्रीमहावीरस्य सलु दर्शनाय भात स्वयन्ति = कटा मे भगवदर्शन भविष्यतीयुत्कण्ठा सतत धरन्ति प्राप्त सत पुनन्तपरित्यक्तु नेछन्तति भाव । हे देवानुप्रिया । यस्य भगनत यल 'दसण 'दर्शन' पत्थति' प्रार्थयन्ति भवन्तो याचते-ह भगवन । भनदर्शनादेव मम जमन सफरता स्थादतो भवतश्ररणपङ्कज दर्शयतु इति रहसि पुन पुन प्रार्थना कुर्वन्ति यद्वा - अस्मत्सदृशेभ्यो जनेभ्य सतत याचन्ते - भगवद्दर्शन कारयतेति भाव । 'जस्स ण देवाणुपिया दसण अभिलसति ' यस्य खलु देवानुप्रिया दर्शनमभिलष्यन्ति = कद्राऽह भगनसमीपमुपगय तपर्युपासन करिष्यामी यभिलापमत करणे कुतो भान्त मन्ति । " 'जम्स ण देवाणुप्पिया दसण पीहति ) जिनके आप देनानुप्रिय दर्शन करने को सन्ा स्पृहा रवा करते है-कन मुझे भगवान् के दर्शन हेग इस प्रकार की उकठा निरन्तर किया करते है, (जस्स ण देवाणुप्पिया दसण पत्थति ) ह देवानुप्रिय जिनके दर्शनों की याचना किया करते है, अर्थात्-ह भगवन् । आपके दर्शन से ही मेरा जन्म सफल होगा, इसलिये आप कृपा करके अपने चरणकमल का दर्शन दाजिये, इस प्रकार एकात में आप नार २ प्रार्थना किया करते है, अथवा हमारे जैसे लोगों से आप प्रार्थना करते हे कि मुझे भगवान का दर्जन कराओ । ( जस्स पण देवाणुण्णिया दसण अभिलति ) हे देवानुप्रिय । आप जिनके दर्शनों की चित्त में सत्य अभिलापा धारण किये रहते हैं कि कन मैं प्रभु के चरणोंम उपस्थित होकर उनकी कसति) दर्शननी Fact या उसे छो, (जस्स ण देनाशुप्पिया । दसण पीहति) જેમના આપ દર્શન ગ્યાની મદા શ્રૃહા રાખેા ! કે યારે મને ભગવા नना दर्शन यशे मे प्रदारनी ही निश्तर यह 1, (जरस ण देवा पिया | सण पत्थति) हे हेवानुप्रिय । प्रेमना दर्शनानी यायना છે, અર્થાત્ હે ભગવાન્ । આપના દર્શનથીજ મારા જન્મ મલ થશે,એ માટે આપ કૃપા કરીને આપના ચરણ કમલના દર્શન આપશે એ પ્રકારે એકાંતમા આપ વાર વાર પ્રાર્થના કર્યા કરે છે, અથવા અમારા જેવા લા પાસે આપ પ્રાર્થના ४। छ। डे भने लगवानना हर्शन उरावेो ( जस्स ण देवाणुप्पिया । दसण अभिलसति ) हे हेवानुप्रिय साथ लेना दर्शनानी भनभा सहा व्यलिसाषा धारय
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