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ॐ सिद्ध भगवान्
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साधारण लोग समझते हैं कि जैसे नरक एक विशेष भूमिभाग को-- जगह को कहते हैं, अथवा स्वर्ग जैसे स्थान-विशेष को कहते हैं, उसी प्रकार मोक्ष भी किसी स्थान का नाम है । किन्तु यह उनका भ्रम है। वास्तव में मोक्ष कोई स्थान नहीं है किन्तु आत्मा की विशिष्ट पर्याय है । सर्वथा शुद्ध, बुद्ध और सिद्ध रूप आत्मा की अवस्था (पर्याय ) मोक्ष कहलाती है। सिद्ध आत्मा लोक के अग्रभाग में विराजमान होती है इस कारण उसे सिद्धिगतिस्थान कहते हैं। मगर ऐसा नहीं समझना चाहिए कि जो उस स्थान में रहते हैं वे सभी सिद्ध हैं या उस स्थान को ही मोक्ष कहते हैं। वास्तव में समस्त कर्मों से रहित आत्मा की अवस्था मोक्ष कहलाती है और मुक्तात्मा लोक के अग्रभाग में स्थित होते हैं।
सिद्ध भगवान् के निवास के विषय में शास्त्र में कहा है:प्रश्न-कहिं पडिहया सिद्धा, कहिं सिद्धा पइडिया ?
कहिं बोदि चइत्ताणं, कत्थ गत्ताणुसिज्झइ ? अर्थात्-सिद्ध भगवान् कहाँ जाकर रुके हैं ? सिद्ध भगवान् कहाँ जाकर स्थित हो रहे हैं ? सिद्ध भगवान् कहाँ शरीर त्याग कर-अशरीर होकर-किस जगह सिद्ध हुए हैं ? उत्तर-अलोए पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पइडिया । इहं बोदिं चइत्ताणं, तत्थ गन्तूण सिज्झइ ॥
-श्री उववाई सूत्र अर्थात्-सिद्ध भगवान् लोक के आगे-अलोक से लगकर रुके हैं, लोक के अग्रभाग में सिद्ध भगवान् स्थित हैं, सिद्ध भगवान् ने यहाँ मनुष्य लोक में शरीर का त्याग किया है और वहाँ-लोक के अग्रभाग में सिद्ध
__ जैसे पाषाण आदि पुद्गलों का स्वभाव नीचे की ओर गति करने का है और वायु का स्वभाव तिर्की दिशा में गति करने का है, उसी प्रकार
आत्मा का स्वभाव ऊर्ध्वगति करने का है । जब तक आत्मा कर्मों से लिप्त रहा है तब तक उसमें एक प्रकार की गुरुता रहती है । इस गुरुता के कारण