________________ उपसर्ग सहे / इतना नहीं, अपराध करनेवाले उस संगम नामा देव के ऊपर कृपा करने की लहर भगवान की आत्मा में उत्पन्न हुई थी। उन की आँखों में यह सोच कर जल भर आया था कि बिचारा मेरे निमित्त से दुर्गति में ले जानेवाले कर्मों का बंधन कर रहा है। प्रभु के जिन नेत्रों में करुणावश जल भर आया उन नेत्रों का कल्याण हो। इस प्रकार श्रीमद् हेमचंद्राचार्य के समान धुरंधर विद्वान् कलिकालसर्वज्ञ आचार्य भी मुक्त कंठ से प्रमु की स्तुति करते हैं। इस भाँति प्रत्येक तीर्थकर उपसर्गों के समय समानभाव रखते थे / एक वार श्रीपार्श्वनाथ प्रभु तापस आश्रम के पीछे वड के नीचे स्थित होकर, ध्यान में आरूढ हुए थे / उस समय कमठनामा एक असुर ने भगवान पर अत्यंत उपसर्ग किये थे। धरणेन्द्र कुमार ने उस देवकृत उपसर्ग का निवारण कर, प्रभु के प्रति अपनी जो भक्ति थी, वह प्रकट की थी। मगर भगवान की मनोवृत्ति तो दोनों के उपर समान ही रही थी। कमठे धरणेन्द्रे च स्वोचित कर्म कुर्वति / प्रमुस्तुल्यमनोवृत्तिः पार्श्वनाथः श्रियेऽस्तु वः॥ इस भाँति सत्य कवियों ने जिन की स्तुति की है। ऐसे श्री भगवान् क्लिष्ट कर्म के क्षयार्थ; द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव