________________ (448) जाता है। १३-सारी वनस्पतियाँ सब प्रकार के प्राणियों क उपभोग म आती हैं। सब प्रकार के शस्त्रों द्वारा भी उनको क्लेश परंपरा का अनुभव करना पड़ता है। तात्पर्य कहने का यह है कि, सारी वनस्पतियाँ अमुक एक जाति ही के जीवों के उपमोग में आती हो सो बात नहीं है / सामान्यतया उनको सब जातियों के जीव खाते हैं / इसीलिए यह कहा गया है। इससे यह नहीं समझना चाहिए कि सब जीव इनको खाते हैं / कहावत है कि " ऊट छोड़े आकड़ो और बकरी छोड़े काँकरो, इस कहावतसे भी यह बात सिद्ध होती है कि, सब वनस्पतियाँ सब जाति के जोवों के उपयोग में आ सकती हैं। १३वीन्द्रिय होने पर भी जीव तपाये जाते हैं और जल के साथ उनका पान करलिया जाता है। कीड़े पैरों तले कुचल जाते हैं / चिलिया आदि पक्षी मी उनको खाजाते हैं। १४द्वीन्द्री शंखादि जीवों का ऊपरवाला भाग उतारलिया जाता है / झोंक को लोग खराब लोहू पिलाकर निचोड़ डालते हैं। पेट में जो कीड़े होते हैं वे औषधादि प्रयोगों द्वारा नष्ट कर दिये माते हैं। १६-तीन इन्द्री जू खटमल आदि जीव शरीरसे कुचले जाते हैं; गरम पानी के द्वारा वे नष्ट भी किये जाते हैं. ( पापी-धर्म के अजान लोग ही ऐसा करते हैं ) / १७कीड़े मकोड़े और धीमेल चीय, खझूर के बने हुए झाडू दे सपाटेसे दुःखी होते है / कई तो मर मी जाते है / कुंथुआ