________________ (529 ) अठारहवाँ गुण / ___अन्योन्यापतिबन्धेन त्रिवर्गमपि साधनम् / अर्थात् धर्म, अथ, और कामरूप त्रिवर्ग की विरोध रहित साधना करना, मार्गानुसारी का अठारहवाँ गुण है / कहा है किः यस्य त्रिवर्गशून्यानि दिनान्यायान्ति यान्ति च / स लोहकारमस्त्रेव श्वतन्नपि न जीवति // भावार्थ-निसके दिन धर्म, अर्थ, और काम रहित जाते हैं और आते हैं, वह लोहार की धौंकनी के समान श्वासोश्वास लेता हुआ भी मृतक है / दूसरे शब्दों में कहें तो वह पशु के •समान है / कहा है कि: त्रिवर्गसंसाधनमन्तरेण पशोरिवायुविफलं नरस्य / तत्रापि धर्म प्रवरं वदन्ति न तं विना यद्भवतोऽर्थकामौ / भावार्थ--जो मनुष्य धर्म, अर्थ और काम की साधना नहीं करता है उसके जीवन को पशु के समान निष्फल समझना चाहिए / इन तीनों में धर्म श्रेष्ठ है। क्योंकि धर्म साधन के विना अर्थ और काम की प्राप्ति नहीं होती है। धर्म सुख का अर्थ का और काम का कारण है। यहाँ तक कि मुक्ति का कारण भी धर्म ही है। धर्म से समस्त पदार्थों की प्राप्ति होती है। धर्म पुण्य लक्षण या संज्ञानरूप है। पुण्य लक्षण धर्म संज्ञान लक्षण धर्म का कारण है / कार्य उत्पन्न कर, कारण भरे दर 34