Book Title: Dharm Deshna
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 569
________________ (542) सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् / / वृणुने हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः / / भावार्थ-सहसा-विना विचारे कोई काम नहीं करना चाहिए / करनेते अविवेक होता है / अविवेक परम आपदा का स्थान हैं / विचार करके कार्य करने वाले पर संपदा प्रसन्न होती हैं और स्वयमेव वह उस की पास चली आती हैं। . दूरदर्शी मनुष्य में भूत और भविष्य का विचार करने की शक्ति होती हैं। जैसे-वह सोचता हैं कि, अमुक कार्य करने से लाभ होगा और अमुक करने से हानि / यह गुण पुण्य के उदय से मिलता है। पुण्यशाली धर्म की प्राप्ति कर सकता है / सताईसवाँ गुण। विशेषज्ञः-अर्थात् विशेष जानकार होना मार्गानुसारी का सत्ताईसवाँ गुण है / जो वस्तु, अवस्तु, कृत्य, अकृत्य, और आत्मा, परमात्मा के अन्तर को जो जानता है, वही विशेषज्ञ कहलाता है / अथवा जो आत्मिक गुण दोषों को विशेष रूप से जानता है वह विशेषज्ञ कहलाता है। जिस को इन बातों का ज्ञान नहीं होता है, वह मनुष्य पशु तुल्य समजा जाता है। जिस मनुष्य में अपने आचरणों के ऊपर दृष्टि रखने की शक्ति नहीं होती वह पशु के सिवा और क्या हो सकता है ? वह कभी ऊँचा नहीं उठ सकता है। कहा है कि:

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