Book Title: Dharm Deshna
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 577
________________ (550) को मर्यादित नहीं बनाता है, तबतक वह गृहस्थ धर्म के योग्य नहीं होता है। ( जिनको यह विषय विशेष रूप से जानने की इच्छा हो, वे हमारी बनाई हुई 'इन्द्रिय पराजय दिग्दर्शन' नामा पुस्तक मँगवाकर पढ़ें।) इसलिये इन्द्रियों को वश में करने का गुण भी मनुष्य में अवश्यमेव होना चाहिए। __इसतरह धर्म के योग्य बनने की इच्छा रखनेवाले गृहस्य चौथे प्रकरण में बताये हुए पैंतीस गुणों को प्राप्त करने का अवश्यमेव प्रयत्न करना चाहिए। ( समाप्त

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