Book Title: Dharm Deshna
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 572
________________ (545) हुआ है, इस लिए लज्जा संयम गिना गया हैं। लजावान पुरुष सर्वत्र सुन्दर फल पाता हैं / निर्लज मनुष्य की गिनती कभी उत्तम मनुष्यों में नहीं होती / लजा गुणधारी मनुष्य प्राणत्याग को अच्छा समझता है, मगर अकृत्य को कभी अच्छा नहीं समझता / कहा है कि:लज्जां गुणौधजननी जननीमिवार्या मत्यन्तशुद्धहृदयामनुवर्तमानाः / .... तेजस्विनः सुखमसूनपि सन्त्यजन्ति, ___ सत्यस्थितिव्यसनिनो न पुनः प्रतिज्ञाम् // भावार्थ-गुण समूह को उत्पन्न करनेवाली माता के समान, और अपने अन्तःकरण को शुद्ध बनानेवाली लज्जा को, धारण करनेवाले सत्यस्थिति के तेजस्वी मनुष्य, मौका आ पड़ने पर अपने प्राणों का त्याग कर देंगे मगर अपनी की हुई प्रतिज्ञा को कभी नहीं छोड़ेंगे / अर्थात् लज्जावान मनुष्य मर जायगा मगर स्वीकृत व्रत को कभी नहीं छोड़ेगा / इसीलिए लज्जावान मनुष्य धर्म के योग्य बताया गया है। इकत्तीसवाँ गुण | . : . सदयः-अर्थात् दयालु होना मार्गानुसारी का इकत्तीसवाँ गुण है / दुखी जीवों को दुखसे छुड़ाकर सुखी करना दया है। जो दयावान होता है वह सदय कहलाता है। दया विना कोई 35

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