Book Title: Dharm Deshna
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 571
________________ (144 ) उनत्तीसवाँ गुण / लोकवल्लभः-अर्थात् लोगों को प्रिय होना मार्गानुसारी का उनत्तीसवाँ गुण है। लोगों से अभिप्राय यहां सामान्य लोगों से नहीं है / क्योंकि सामान्य लोग धर्म करनेवाले की भी निंदा करते है और जो धर्म नहीं करता है उसकी भी निंदा करते है। उनका वल्लभ तो कोई भी नहीं हो सकता है। कार्य करनेवाले के वे दूषण निकालते है और नहीं करनेवाले को हतवीर्य बताते हैं / वे साधु की भी निन्दा करते हैं और गृहस्थ की भी। इसी लिए कीसी ज्ञानीने कहा है कि-'कहे उसे कहने दो, सिरपे टोपो रहने दो। इसलिए यहां लोगों से अभिप्राय प्रामाणिक लोगों से है, सामान्य लोगों से नहीं। प्रामाणिक लोगों का विनय, विवेक करके वल्लम होनेवाला मनुष्य ही धर्मकृति भली प्रकार कर सकता है। तीसवाँ गुण। सलज्जा-अर्थात सलज्ज होना, मार्गानुसारी का तीसवां गुण हैं / मर्यादावर्ती मनुष्य; लज्जावान मनुष्य कभी अपने स्वीकृत व्रत का परित्याग नहीं करता है। अपने प्राणों के नष्ट होने पर भी व्रतसे च्युत नहीं होता है। इसलिए दशवैकालिक सूत्र में 'लज्जा' शब्दसे संयम का स्वीकार किया गया है। संयम का कारण लज्जा है। यहां कारण में कार्य का उपचार

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