Book Title: Dharm Deshna
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 574
________________ नहीं आते, जैसे कि दूसरे जीवों के आते हैं। इसलिए इस असार शरीर से परोपकार कर सार ले लेना चाचिए। जिसमें परोपकार करनेका गुण नहीं होता, मगर, ज्ञान, ध्यान, तप, जप, शील और संतोष आदि गुण होता है, वह आत्मतारक होसकता है; परन्तु शासनोद्धारादि कार्य नहीं करसकता है। आत्मतारक .गुण भी बहुत बड़ा है / उसकी कभी निंदा नहीं करनी चाहिए। शक्ति के अनुसार जो कार्य किया जाता है, वही प्रशस्त गिना जाता है / मूककेवली और अंतकृत केवली आदि आत्मातारक होते हैं / यदपि कइयों में दूसरों को तारने की शक्ति होती है। . परन्तु वे उसका उपयोग नहीं करते / इसका कारण शास्त्रकार उनके अन्तराय कर्म का उदय बताते हैं / इसीलिए कहा गया है कि जो परोपकार करने में शुरवीर होता है, वही धर्म के योग्य होता है। चौतीसवाँ गुण / अन्तरङ्गारिषड़वर्गपरिहारपरायणः / अंतरंग छः शत्रुओं का-काम, क्रोध, लोभ, मान, मद और हर्ष का त्याग करना मार्गानुसारी का चौतीसवाँ गुण है। परस्त्री के, या कुंवारी लड़की के संबंध में विचार करने को काम कहते हैं / अपने आत्मा को या दूसरे के आत्मा को कष्ट देनेका विचार करना क्रोध है। दान देने योग्य स्थान में दान न देने को और दूसरे के धन को

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