________________ (546 ) मनुष्य धर्म के योग्य नहीं होता / धर्म के नाम पंचेन्द्री जीव का वध करने वाला कभी दयाछु नहीं कहा जा शकता / जो अन्त:करण दुखी जीवों को देखकर दया से पिघल नहीं जाता है वह अन्तःकरण नहीं है बल्के अंतकरण-नाश करनेवाला-है। वास्तविक रीति से दान पुण्य वही करसकता है जो दयालु होता है / बत्तीसवाँ गुण / सौग्यः-अर्थात् शान्त स्वभावी, अक्रूर आकृतिवाला होना, मार्गानुसारी का बत्तीसवाँ गुण है। करमूर्ति लोगों के हृदय में उद्वेग उत्पन्न करनेवाली होती है। क्रूरमूर्ति या अकर मूर्ति का होना पूर्व पुण्य के आधार पर है। पूर्व पुण्य या उस प्रकार के संबंध विना मनुष्य धर्मध्यान की सामग्री नहीं पासकता है। तेत्तीसवाँ गुण। परोपकृतिकर्मठः / अर्थात् दृढतापूर्वक परोपकार करना मार्गानुसारी का तेतीसवाँ गुण है। परोपकार करनेवाला मनुष्य सब के नेत्रों को ऐसा सुखदायी होता है जैसा कि अमृत / परोपकार गुण विहीन मनुष्य पृथ्वी का मार मात्र है। मनुष्य का शरीर असार है, क्योंकि इसके अवयव मनुष्यों के किसी काम में x जो इन बातों का स्वरूप विशेष रूपसे जानना चाहें वे हमारी लिखी हुई ' अहिंसा दिग्दर्शन ' नामा पुस्तक पढ़ें।