Book Title: Dharm Deshna
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 568
________________ (541) उपादेय की जानकारी होती हैं, वह ज्ञान कहलाता हैं, उस में जो विशेष होता हैं, यानी जिस में विशेष ज्ञान होता हैं वह ज्ञान वृद्ध कहलाता हैं / इन दोनों की सेवा करनेवाला महाफल प्राप्त करता हैं / व्रती पुरुषों की सेवा करनेसे व्रत का उदय होता हैं और ज्ञान वृद्धों की सेवासे वस्तु धर्म की पहिचान होती है। इन की सेवा कल्पवृक्ष के समान फलदायिनी होती है। पचीसवाँ गुण / पोष्यपोषक:-पोषण करने योग्य माता, पिता, भाई, बहिन, पुत्र, परिवार का पोषण करना, मार्गानुसारीका पचीसवां गुण है / परिवार को अप्राप्त पदार्थों की प्राप्ति कर देना और जो प्राप्त हैं उन की रक्षा करना, ही उन की रक्षा करना है। ऐसा करनेते लोक व्यवहार अबाधित चलता है। लोक व्यवहार की बाधा धर्म साधन में बाधक होती है। इस लिए पोषण करने योग्य का पोषण करनेवाला गृहस्थ धर्म के योग्य होता है / छब्बीसवाँ गुण। . दीर्घदर्शी-अर्थात् दूर का देखना-भावी का विचार करना मार्गानुसारी का छवीसवां गुण है / दूरदर्शी अर्थानर्थ का विचार करता है / वह कभी अनुचित साहस नहीं करता / अनुचित साहस करनेवाले मनुष्य का कभी कल्याण नहीं होता / कहा है किः

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