________________ ( 537 ) जहाँ देखो वहीं कुयुक्ति करनेवाले ही दृष्टिगत होते हैं। सुयुक्ति के अनुसार बातें करनेवाले और सुयुक्ति का आदर करनेवाले बहुत ही कम लोग दिखाई देते हैं। युक्ति का वहीं आदर होता है कि, जहाँ आग्रह का अभाव होता है। अनाग्रही मनुष्य ही धर्म के योग्य होते हैं। इक्कीसवाँ गुण / पक्षपातीगुणेषु च-अर्थात् गुणों में पक्षपात करना मार्गानुसारी का इक्कीसवाँ गुण है। सुजनता, उदारता, दाक्षिण्य, प्रियभाषण, स्थिरता और परोपकार आदि यानी स्वपर हितकारक और आत्महित साधन के सहायक जो गुण हैं उनका पक्षपात करना, उन गुणों का बहुमान करना, उनकी रक्षा की मदद करना गुण पक्षपात है / गुणपक्षपाती भवान्तर में सुंदर गुण प्राप्त करता है और गुणद्वेषी निर्गुणी बनता है। व्यक्तिगत द्वेष के कारण कई, सात्मवैरी मनुष्य गुणों से ईर्ष्या करते है। ऐसा करना महान् अनथकारी बात है / गुणद्वेषी तो किसी समय भी नहीं बनना चाहिए। हमें सारे जगत के जीवों के गुणों की अनुमोदना करना चाहिए। जिससे हमें भवान्तर में गुणों की प्राप्ति हो। तेईसवाँ गुण। अदेशकालयोश्चर्या त्यजन्-अर्थात् निषिद्ध देश और निषिद