________________ (538) मर्यादा का त्याग करना मार्गानुसारीका बाईसवां गुण है। निषिद्ध देश में जानेसे एक लाभ और हजारों हानियां होती हैं। निषिद्ध देश में जानेसे लाभ एक धन का होता है; परंतु धर्महानि, व्यवहार निःशूकता और हृदय निष्ठुरता आदि दुर्गुणनुकसान होते हैं। जीव का स्वभाव है कि वह विषय की ओर विशेष रूपसे झुकता है। अनार्य देश में जानेसे धार्मिक पुरुषों का सहवास छूटता है व प्रत्यक्ष प्रमाण ही को माननेवाले लोगों का और मांसाहारी व्यक्तियों का समागम होता है, इससे उस का मन भी उसी प्रकार का बनने लगता है / यद्यपि गंगा का जल मिष्ट, स्वादु और पवित्र समझा जाता है; परन्तु वही समुद्रमें जा कर क्षार हो जाता है, इसी तरह विदेश जाते समय मनुष्य पहिले धार्मिक, सरल स्वभावी और दृढ मनवाला होता है। परन्तु शनैः शनैः वह गंगा के जल के समान खारा हो जाता है। शंका-मान लिया कि यदि कोई स्वार्थसाधन के लिए विदेश जायगा तो समुद्र में मिलनेवाले गंगाजल के समान खारा हो जायगा; मगर यदि कोई दृढ धर्मात्मा जगत् पूज्य पुरुष आर्य धर्म के तत्त्वों का प्रचार करने के लिए विदेश में जाय तो क्या उस की भी वैसी ही दशा हो सकती है ? उत्तर-यदि कोई सर्पमणि के समान हो तो वह चाहे जिप्स जगह जाय / उस के लिए कोई प्रतिबंध नहीं है। जैसे सर्प और मणि का जन्म और मरण एक ही साथ होता हैं,