Book Title: Dharm Deshna
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 554
________________ (527 ) को बिगाड़नेवाली है। इसलिए कहा जाता है कि दस्त. लेना दोनों लोकों में हानि पहुँचानेवाली बात है। पाक्षिक उपवास पन्द्रह दिन में खाये हुए अन्नका परिपाक कराता है; मन को इनिर्मल बनाता है; ईश्वर भजन में लगाता है और अन्नपर रुचि कराता है / जिस से रोग नहीं होता है / इसलिए पन्द्रह दिन में एक उपवास अवश्यमेव करना चाहिए। अनीर्ण में भोजन करने से शरीर ठीक हो जाता है। अजीर्ण न हो तो नियम से थोड़ा भोजन करना चाहिए / भूख से कुछ कम खाने से खाया हुवा भोजन, अच्छा रस, वीर्य उत्पन्न करता है। कहा है कि:“यो मितं भुते स बहु भुड़े' ( जो थोड़ा खाता है वह बहुत खाता है / इसलिए खाने की विशेष लालसा न कर अनीर्ण के समय भोजन का सर्वथा त्याग करना चाहिए। सत्रहवाँ गुण। ___काले भोक्ता च सात्म्यतः / अर्थात् समय पर प्रकृति के अनुकूल भोजन करना मार्गानुसारी का सत्रहवाँ गुण है। जैसे विष थोड़ा होने पर भी हानिकर होता है इसीतरह आवश्यकता से थोड़ासा ज्यादा खाना भी हानिकर होता है। इसीलिए सात्म्य पदार्थ खाने का उपदेश दिया गया है। कहा है कि पानाहारादयो यस्याविरुद्धाः प्रकृतेरपि / सुखित्वायाऽवकल्पन्ते तत्सात्म्यमिति गीयते //

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