Book Title: Dharm Deshna
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 552
________________ कहना चाहिए कि-शरीरमाद्यं खलु पापं साधनम् (शरीर प्रथम पाप का साधन है ) निसके शरीर नहीं होता है उसके पाप का बंध भी नहीं होता है / सिद्ध जीवों के शरीर नहीं होता इसलिए उनके पाप का बंध भी नहीं होता / शरीर पाप का कारण है और पाप शरीर का कारण है / जहाँ शरीर नहीं, वहाँ पाप नहीं और जहाँ पाप नहीं वहाँ शरीर नहीं। इस तरह दोनों की अन्वय व्यतिरेक व्याप्ति है / तो भी व्यावहारिक दृष्टि से शरीर प्रथम धर्म का साधन माना गया है। इसीलिए अनीण में भोजन का त्याग करना बताया गया है / वैद्यक शास्त्रों में लिखा है कि,-अजीर्णप्रभवा रोगाः ( रोग अजीर्ण से उत्पन्न होते है।) शंका-कई स्थानों में लिखा है कि-धातुक्षयप्रभवारोगाः ( धातु के क्षय से रोग उत्पन्न होते हैं।) इन दोनों वाक्यों में से कौन से वाक्य को सत्य मानना चाहिए ? उत्तर-धातु का क्षय भी अजीर्ण ही से होता है / यदि अन्न भली प्रकार से पच जाय तो मनुष्य को कभी धातुक्षय रोग न हो। किसी तरह परिश्रम से निर्बलता नहीं आती / मनुष्य वही निर्बल होता है जिसको भोजन हनम नहीं होता है। अजीर्ण होने पर मी इन्द्रिय लालसा से भोजन करता है, वह स्वशरीर को नष्ट करता है / अजीर्ण के लक्षण जानने के लिए निम्नलिखित श्लोक हरेक को कण्ठाग्र कर लेना चाहिए। कहा है किः

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