Book Title: Dharm Deshna
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 551
________________ (524) की अपेक्षा रखना अनावश्यक है / एक कविने कहा है कि: कि हारैः किमुकङ्कणैः किमसमैः कर्णावतंसैरलं * कैयूरैर्मणिकुण्डलैरलमलं साडम्मरैरम्बरैः / पुंसामेकमखण्डितं पुनरिदं मन्यामहे मण्डनं यन्निष्पीडित पार्वणामृतकरस्यन्दोपमाः सूक्तयः // भावार्थ-यदि मनुष्य को पूर्णिमा के चंद्र से झरते हुए अमृत की उपमा के समान यथार्थ वचन वर्गणा प्राप्त हो जाय तो फिर हारों से क्या होता है ! कंकणों से भी क्या होता है ? अमूल्य कर्णभूषणों से भी क्या प्रयोजन है ? बाजूबंध की भी * कोई आवश्यकता नहीं है / मणिभय कुंडलों से भी क्या प्रयोजन है ? और अति स्वच्छ वस्त्र भी व्यर्थ है, यानी यथार्थ वचन वर्गणा और मधुर भाषण ही मनुष्य का भूषण है / मधुर भाषण की प्राप्ति मनुष्य को धर्मश्रवण से मिलती है। सोलहवाँ गुण / ___ अजीर्णे भोजन-त्यागी / अर्थात अनीर्ण में भोजन नहीं करना मार्गानुसारी का सोलहवाँ गुण है / जो अजीर्ण में भोजन नहीं करता है उसका शरीर स्वस्थ रहता है / स्वस्थ मनुष्य ही धर्म की साधना कर सकता है। इसीलिए व्यवहारनय का आश्रय लेकर कई कहते हैं कि, शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम् (शरीर प्रथम धर्म का साधन है। ) मगर वस्तुस्थिति के अनुसार यह

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