________________ (528) भावार्थ-जो खाना, पीना प्रकृति के अनुकूल होता हैं वही सात्म्य आहार कहलाता है। बलवान पुरुके लिए सब पदार्थ पथ्य हैं / तो भी योग्य समय में योग्य पदार्थ खाना ही उचित है / क्यों कि ऐसा करने ही से हमेशा स्वास्थ्य ठीक रह सकता है; और स्वास्थ्य के ठीक रहने ही से धर्म की साधना हो सकती है। संसार का हरेक कार्य विधिपूर्वक किया जाना चाहिए। जैसे दूसरे कामों की विधि बताई गई है, वैसे ही भोजन की भी विधि बताई गई है / इसलिए गृहस्थियों को अनुसार भोजनादि बनाने चाहिए। कहा गया है कि पितुर्मातुः शिशूनां च गर्भिणीवृद्धरोगिणाम् / प्रथमं भोजनं दत्त्वा स्वयं भोक्तव्यमुत्तमैः // भावार्थ-माता, पिता, बालक, गर्मिणी, वृद्ध और रोगी इन सबको पहिले भोजने देकर फिर भोजन करना चाहिए। ऐसा करना उत्तम पुरुषों का कर्तव्य है / और भी कहा है कि: चतुष्पदानां सर्वेषां धृतानां च तथानृणाम् / चिन्तां विधाय धर्मज्ञः स्वयं मुञ्जीत नान्यथा। भावार्थ-धर्मज्ञ-धर्मात्मा मनुष्यों को अपने रक्खे हुए पशु पक्षियों की और नौकर लोगों की पहिले खबर लें तब वे स्वयं भोजन करें। अन्यथा नहीं। इसतरह उचित समय में भोजन करना मार्गानुसारी का सत्रहवाँ गुण है।