________________ ( 513) विपर्यास रहित वस्तु धर्म का जानना / ८-तत्वज्ञान-अमुक पदार्थ इसी तरह है। इसमें लेशमात्र भी परिवर्तन नहीं हो सकता है; ऐसा निश्चय / पन्द्रहवाँ गुण। शृण्वानो धर्ममन्वहम् / अर्थात्-धर्म सुननेवाला धर्म योग्य होता है, धर्मश्रवण मार्गानुप्तारी का पन्द्रवाँ गुण है। ऊपर बुद्धि के आठ गुण बताये गये हैं। उनका धारण करनेवाला पुरुष कभी अकल्याण का भागी नहीं होता है। इसी लिए. धम सुननेवाला धर्म का अधिकारी बताया गया है। यहाँ धर्मश्रवण विशेष गुण समझना चाहिए। बुद्धि के गुणों में जो श्रवण गुण आया है वह श्रवण मात्र अर्थवाला है। इसलिए दोनों के एक होने का संशय नहीं करना चाहिए / धर्म सुननेवाले के विशेष गुण निम्न लिखित श्लोक से स्पष्ट होंगे। क्लान्तमपोन्झति खेदं तप्तं निर्वाति बुद्धचते मुढम् / - स्थिरतामेति व्याकुलमुपयुक्तसुभाषितं चेतः // भावार्थ-यथावस्थित सुभाषितवालामन खेद को दूर करता है; दुःख दावानल से तप्त पुरुषों को शान्त करता है; अज्ञानी को बोध देता है; व्याकुल मनुष्य को स्थिर बनाता है। यानी सुन्दर वचन-वर्गणा का श्रवण सारे शुभ पदार्थों को देनेवाला होता है / यदि सुंदर उक्ति प्राप्त हो जाय तो फिर अलंकारादि