________________ ( 461) देवगति के दुःख। देवगति में जाकर जीव सुखी होते हैं या नहीं इसका उत्तर निम्नलिखित श्लोकों से मिलजायगा। शोकामर्षविषाादैन्यादिहतबुद्धिषु / अमरेष्वपि दुःखस्य साम्राज्यमनुवर्तते // 1 // दृष्ट्वा परस्य महतीं श्रियं प्रागजन्मजीवितम् / अनितस्वल्पसुकृतं शोचन्ति सुचिरं सुराः // 2 // न कृतं सुकृतं किञ्चित् आभियोग्यं ततो हि नः / दृष्टोत्तरोत्तरश्रीका विषीदन्तीति नाकिनः // 3 // दृष्टान्येषां विमानस्त्रीरत्नोपवन संपदम् / यावज्जीवं विपच्यन्ते ज्वलदानलोमिभिः // 4 // हा प्राणेश ! प्रभो ! देव ! प्रसीदेती सगद्गदम् / पौर्षिततर्वस्वा भाषन्ते दीनवृत्तयः // 5 // प्राप्तेऽपि पुण्यतः स्वर्गे कामक्रोधर्मयातुराः / न स्वस्थतामश्नुवते सुरा कान्दर्पिकादयः // 6 // अथ च्यवनचिह्नानि दृष्ट्वा दृष्वा विमृश्य च / विलीयन्तेऽथ जल्पन्ति क्व निलीयामहे वयम् // 7 // मावार्थ-१-शोक, असहिष्णुता, खेद, ईर्ष्या और दीनतादि के द्वारा हतबुद्धि देवों पर भी दुःख की सत्ता चलती है। अर्थात् देवों में भी शोक, असहिष्णुता, खेद, ईर्ष्या और दीन--