________________ (10) चंचलता, झूठा सिक्का बनाना; झूठी साक्षी देना; स्पर्श, रस वर्ण और गंध से दूसरों को ठगना; एक बात को दूसरी तरह बताना ( जैसे-सगाई करते समय कन्या श्याम वर्ण की हो तो भी गौर वर्ण की बताना / इसी तरह और भी बातें समझना चाहिए ) पशुओं के अंगोपांग का छेद करना ( जैसे कई कुतों की पूंछ काट देते हैं; कई घोड़ों और बैलों को खीसी-अखता-बनाते हैं / आदि ) यंत्र कर्म, पंजर कर्म, झूठे माप और तोल रखना, दूसरों की निंदा और आत्मप्रशंसा करना, हिंसा, अनृत भाषण, चोरी, अब्रह्म सेवन, परिग्रह और महारंभ करना, कठोर और अनुचित वचन कहना; किसी की मनोहर वेष और सुंदर अलंकारों से सहायता करना; बहुत बड़बड़ाना; आक्रोश करना (विना कारण ही किसीका अपमान करना ) अन्य की शोभाका घात करना; किसी पर जादू टोना करना; दिल्लगी या अन्य किसी चेष्टा द्वारा अन्यको कौतुहल उत्पन्न करना; वैश्याकी शोभा बढ़ाने के लिए उसको अलंकारादि देना; दावानल लगाना; धर्मात्मा पुरुषों से देवपूजा के नाम सुगंधित पदाथ लेना; अत्यंत कषाय करना; देवालय, उपाश्रय, धर्मशाला और देवमूर्ति आदिका नाश करना; इसी तरह अंगारादि पन्द्रह कर्मादान करना और कराना / ये सब अशुभनाम कर्म के आस्रव हैं। ऊपर बताये हुए परिणामों से विपरीत परिणाम होना; प्रमादकी हानि, सद्भावकी वृद्धि क्षमादि गुण, धार्मिक पुरुषों के दर्शनों से 31