________________ (479) सहित शीलवत, नील और कापोत लेश्या, अव्रत और कषाय तिर्यंचायु के आस्रव है। कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्राचार्य महाराजने मनुष्यायु के आस्रव निम्न प्रकार से बताये हैं अल्पो परिग्रहारम्भौ सहले मार्दवावे / कापोत पीतलेश्यत्वं धर्मध्यानानुरागिता // 1 // प्रत्याख्यानकषायत्वं परिणामश्च मध्यमः। संविभागविधायित्वं देवतागुरुपूजनम् // 2 // पूर्वालापप्रियालापौ सुखप्रज्ञापनीयता। लोकयात्रासु माध्यस्थ्यं मानुषायुष आश्रवाः // 3 // भावार्थ-अल्पारंम और अल्पपरिग्रह, स्वाभाविक मृदुता भौर सरलता, कापोत और पीतलेश्या के भाव, धर्मध्यान में अनुराग; कषाय का त्याग, मध्यम परिणाम, प्रतिदिन सुपात्र को दान देकर भोजन ग्रहण, देवगुरू का पूजन, प्रिय भाषण, भागत का स्वागत और सुखपृच्छा और लोकव्यवहार में मध्यस्थता ये मनुष्यायु के आस्रव हैं। . . देवायु के बंध हेतु ये हैसरागसंयमो देशसंयमोऽकामनिर्भरा। कल्याणमित्रसंपर्को धर्मश्रवणशीलता // // 1 // पात्रे दानं तपः श्रद्धारत्नत्रयाविराधना / मृत्युकाले परिणामो लेश्ययोः पद्मपीतयोः // 2 //