________________ (514 ) . ... " एकवार ब्रह्मचारियों में शिरोमणि नारदजीने कृष्णनी से धूछा:-"महारान, सत्संग का क्या फल है ? " कृष्णनीने उत्तर दिया:-" क्या तुम सत्संगति का फल जानना चाहते हो !" नारदजीने कहाः-" हा महाराज!" कृष्णजी बोले:-" अमुक नरक में जाओ, वहाँ एक कीड़ा है। वह तुमको सत्संगति का कल बतायगा / " नारदजी नरक में गये / उन्होंने वहाँ कृष्णनी के बताये हुए कीड़े को देखा। नारदनी को देखते ही कीड़ा पर गया / नारदजी वापिस कृष्णजी के पास आये और कहने लगेः-" महाराज ! आपने अच्छा सत्संगति का फल बताया। मैं गया था फल लेने और मिली मुझको जीवहिंसा / " कृष्णजीने कहा:-" धैर्य रक्खो, सत्संगति का फल भच्छा ही होगा।" - एकवार फिरसे नारदनीने कृष्ण नी से सत्संगति का फल पूछा, कृष्णजीने कहा:-" अमुक बगीचे में जाओ। वहाँ अमुक वृक्षके ऊपर एक पक्षी का घौंसला है, उसमें एक छोटासा बच्चा है वह तुमको सत्संगति का फल बतायगा / " नारदजी बाग में पए / जैसे ही नारदनी की और बच्चे की चार आँखें हुई, वैसे ही बच्चा मर गया। नारदनी विचार करते हुए कृष्णजी के पास गये / कृष्णजी को सारा हाल सुनाया। थोड़े दिन बाद नारदजीने और कृष्णजी से सत्संगति का फल पूछा / कृष्णजीने कहाः"अमुक गवाले की गाय को आन बछड़ा हुआ है। उसके पास