________________ (491 ) जे धम्मिया ते खलु सेवियव्वा जे पंडिया ते खलु पुच्छियव्वा / जे साहुणो ते अभिवंदियव्वा जे निम्ममा ते पडिलाभियव्वा // 14 // पुत्ता य सीसा य समं विभत्ता रिसी य देवा य समं विभत्ता / मुक्खा तिरिक्खा य समं विभत्ता मुआ दरिद्दा य समं विभत्ता // 15 // सव्वा कला धम्मकला निणाई सव्वा कहा धम्मकहा निणाई / सव्वं बलं धम्मबलं जिणाई सव्वं सुहं धम्मसुहं जिणाई // 16 // जए पसत्तस्स धनस्स नासो मंसे पसत्तस्स दयाइनासो / मज्जे पसत्तस्स जसस्स नासो वेसापसत्तस्स कुलस्सनासो // 17 // हिंसापसत्तस्स सुधम्मनासो चोरीपसत्तस्स सरीरनासो / तहा परस्थीसु पसत्तयस्स सव्वस्स नासो अहमा गई य // 18 // दाणं दरिदस्त पहुस्सखंती इच्छानिरोहो य सुहोइयस्त / तारुन्नए इंदियनिग्गहो य चत्तारि एयाणि सुदुक्कराणि // 19 // असासयं जीवियमाहु लोए धम्मं चरे साहुजणोवइडं / धम्मो य ताणं सरणं गई य धम्मं निसेवित्तु सुहं लहन्ति // 20 // भावार्थ-१-लोमी द्रव्योपार्जन में, मूर्ख काम मोग में, और तत्त्ववेत्ता क्षमा में अपनी तत्परता दिखाते हैं। मगर सामान्य मनुष्य अर्थ, काम और क्षमा इन तीनों को अंगीकार करते हैं / २-पंडित वेही हैं जो क्रोध और विरोध से अलग रहते हैं; साधु वेही हैं जो सिद्धान्तानुकूल चलते हैं; सत्यवादी वेही हैं जो धर्मसे विचलित नहीं होते हैं और बंधु वही है जो.