________________ (504 ) के पैसे से योगी की हानि हुई / ये दोनों बातें राजा के पास पहुँचाई गई। राजाने मनमें सोचा,-नीतिवान मनुष्य सदा निर्मीक रहता है और अनीतिमान सशंक / नीति ही संपार में सर्वोत्कृष्ट पदार्थ है / कहा है कि: सर्वत्र शुचयो धीराः स्वकर्मबलगर्विताः / कुकर्भनिहतात्मानः पापाः सर्वत्र शङ्किताः // 1 // भावार्थ-पवित्र, धीर पुरुष अपने श्रेष्ठ व्यवहार के कारण सदैव निर्भीक रहते हैं और कुकर्मों द्वाग आहत बने हुए पापी लोगों के हृदय में हर समय शंका घुमी रहती है। उक्त उदाहरण हमें बताता है कि, अनीति संपन्न द्रव्य मनुष्यों की सद्बुद्धि को नष्ट कर देती है और उन्हें अधर्म के मार्ग की ओर ले जाती है। इस लिए बुद्धिमान मनुष्यों को नीति पूर्वक द्रव्य एकत्रित करने का प्रयत्न करना चाहिए / कहा है किः सुधीरर्थार्जने यत्नं कुर्यान्न्यायपरायणः / न्याय एवानपायोऽयमुपायः संपदां यतः // 1 // भावार्थ-बुद्धिमान मनुष्यों को न्यायपरायण बन कर, द्रव्योपार्जन करने का यत्न करना चाहिए। क्यों कि न्याय ही लक्ष्मी का विघ्र रहित उपाय है। कहा है कि: