________________ (492) कष्ट के समय में सहायता करते हैं। ३-क्रोध व्याप्त मनुष्यों को कभी सुख नहीं मिलता, अहंकारी सदैव शोकाच्छन्न रहते हैं; कपटी इस भव में और परमव में दूसरों के दास होते हैं और लोभी व बहुत बड़ी तृष्णावाले प्राणी नरक में जाते हैं। ४-विष का चीन है ?-क्रोध / अमृत क्या है ?-अहिंसा दया। शत्रु कौन है ?-मान / हित क्या है ?-अप्रमाद। मय क्या है ?-माया / शरण कौन है ?-सत्य / दुःख क्या है ?-लोम। सुख क्या है ?-संतोष / ५-सौम्य परिणामी शान्त स्वभाववाले विनयी को बुद्धि ( विद्या) प्राप्त होती है। क्रोधी और कुशीलवाले को अपकीर्ति मिलती है; भग्नचित्तवाले को-अस्थिर चित्तवाले को निर्धनता मिलती है और सत्यवान को लक्ष्मी का लाभ होता है / ६-कृतघ्न यानी नमकहराम मनुष्य को मित्र छोड देते हैं; यत्नशील मुनिको पाप छोड़ देते हैं, सुखे हुए सरोवर को हंस छोड़ जाते हैं और कुपित मनुष्य का बुद्धि त्याग कर देती है। ७-अरुचिवाले मनुष्य को परमार्थ की बात कहना अरण्य-रुदन समान है-व्यर्थ है; अर्थ का निश्चय किये विना बोलना वृथा प्रलाप है; विक्षिप्त चित्तवाले को कुछ कहना निरर्थक विलाप है और कुशिष्य को विशेष कुछ कहना फिजूल रोना है। ८-दुष्ट राजा प्रजाको दंड देने में, विद्याधर मंत्रसाधन में, मुर्ख क्रोध करने में और साधुपुरुष तत्त्व विचार में तत्पर होते हैं। ९-क्षमा उग्रतपस्वी की शोभा है; समाधियोग उपशम