Book Title: Dharm Deshna
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 527
________________ (500) "पाप जाने आप, माँ जाने बाप / " इस न्याय के अनुमार यहाँ लोग उपस्थित हैं वे सब अनीति प्रीय जान पड़ते हैं। अपने नगर में सेठ लक्ष्मीचंद हैं। वे नीतिमान हैं। मगर इस समय वे यहाँ उपस्थित नहीं हैं। अपने घर होंगे।" राजा की आज्ञा होते ही उनके घर एक घोडागाड़ी लेकर मंत्री गया। मंत्रीने कहा:-" सेठनी ! चलो राजाने आपको याद किया है / " सुनकर, वह बहुत प्रसन्न हुआ और कपड़े पहिन कर, चलने को स्पर हुआ। मंत्रीने उसको गाड़ी में बैठने के लिए कहा / उसने कहाः-" घोड़े मेरा अन्नपानी नहीं खाते, इसलिए मैं गाड़ी में नहीं बैलूंगा / आप चलो / मैं अभी आता हूँ।" सेठ दल ही राजाके पास पहुँचा। उचित सत्कार, अभिनंदन कर रठ गया / राजाने पूछा:-"तुम्हारे पास न्यायसंपन्न द्रव्य है।" उसने उत्तर दिया:-" हाँ है / " राजा खातमुहूर्त के लिए रत्न पाहिए सो हमें दो। सेठ-महाराज ! नीति का पैसा अनीति में नहीं दिया जाता / " सेठ का उत्तर सुनकर राजा को क्रोध भाया / उसने आँखे दिखाकर कहा:-" तुम्हें रत्न देने ही पड़ेंगे / " सेठने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया:-" महाराज ! घरबार पब आपही के हैं। आप इनको ग्रहण कीजिए। " पंडित लोग बोले:-" यदि जबर्दस्ती सेठके घर से द्रव्य मँगवाया मायगा तो, वह भी अनीति का ही समझा जायगा / " इस तरह बातें करते हुए मुहूर्त वीत गया। राजाने कहा:

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