________________ (482) उत्पन्न होनेवाला उल्लास आदि शुभनाम कर्म के आस्रव हैं। तीर्थकर नाम कर्मके बीप्त आस्रव हैं। १-तीन लोक के पूज्य, ध्येय और स्तवनीय श्री तीर्थंकर भगवान की भक्ति करना, २-कृतकृत्य और निष्ठितार्थ श्रीसिद्ध भगवानकी भक्ति करना। ३-पंचमहाव्रतधारी, त्यागी, वैरागी, क्रियापात्र और ज्ञान, ध्यानादि गुणरूपी रत्नों के आकर मुनियों की भक्ति करना। ४-छत्तीस गुण-गणसमन्वित गच्छनायक श्रीआचार्य महाराज की भक्ति करना / ५-समस्त द्रव्यानुयोग, चरितानुयोग और कथानुयोगादि शास्त्रों के पारगामी बहुश्रुतकी भक्ति करना / ६-आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, गणावच्छेदक, गणी और स्थविरादियुक्त, समुदाय जो गच्छ उसकी भक्ति करना। ७-ज्ञानदाता ग्रंथ लिखना, लिखाना, लिखे हुओं की संभाल रखना, जीर्णो का उद्धार करनाः लोकोपकारी ज्ञान का प्रचार करना; उसके उपकरणों की-पाटी, पुस्तक, ठवणी, कवली, सापड़ा सापड़ी आदि की- अवज्ञा न करना; ज्ञानाराधक तिथियों की सम्यक प्रकार से आराधना करना / ' नमोनाणस्स ' इस पद की बीस नोकरवाली गिनना; निरंत 51 खमासमण देना और 51 लोगस्सका काउसग्ग करना। इस प्रकार से ज्ञान भक्ति करना। इसको श्रुतमक्ति कहते हैं। (-छछ, अट्टम, दशम, द्वादश, पंचदश और मासक्षमणादि की देशकालानुसार तपस्या करनेवाले तपस्वी