________________ (570) संरम्भः सकषायः परितापनया भवेत्समारंभः / आरंभः प्राणिवधस्त्रिविधो योगस्ततो ज्ञेयः / / भावार्थ-कषाय सहित जो योग होता है उसको संरंभ कहते हैं; परितापनासे-दूसरे के सताने से-जो संरंभ होता है उसको समारंभ कहते हैं और जिस काय में प्राणियों का मरण होता है उसको आरंभ कहते हैं। उक्त मूल तीन भेदों के साथ मन, वचन और काया को मोड़ने से नौ भेद होते हैं। जैसे-मनसंरंभ, वचनसरंभ, और कायसरंभ; मनसमारंभ, वचनप्तमारंभ और कायप्समारंभ; मनआरंभ, पचनआरंभ और कायआरंभ / इस तरह नौ हुए। इनके साथ, कृत, कारित और अनुमोदित जोड़ने से सत्ताईस होते हैं / जैसे -कृतमनसंरंभ, कारितमन सरंभ और अनुमोदित मनसंरंभ; कृत पचनसंरंभ, कारितवचनसंरंभ और अनुमोदित वचनसंरंभ; और कृतकायसरंभ, कारितकायसरंभ और अनुमोदित कायसंरंभ / इसी तरह कृत, कारित और अनुमोदित से समारंभ और आरंभ को भी गिनने से 27 हुए। इन सत्ताईस भेदों को क्रोध, मान, माया और लोभ के साथ जोड़ने से एकसौआठ भेद होते हैं। 1 क्रोधकृतमनः संरंभ 2 क्रोधकारितमनःसंरंभ 3 , अनुमोदितमनःसंरंभ 4 , कृतवचन सरंम 5 कारितवचन संरंभ 6 , अनुमोदित वचनसम्म 7 , कृतकाय संरंभ , कारितकाय सम्म