________________ (773) पहिले यहाँ ज्ञानावरणी और दर्शनावरणी के बंध-हेतु आस्रवों का विवेचन करेंगे। मति, श्रुति, अवधि, मनःपर्यय और केवल इन पाँच ज्ञानों में से किसी ज्ञानकी, उक्त पाँच ज्ञानों में से किसी ज्ञान धारण करनेवाले की, ज्ञानी पुरुषों की, ज्ञानोपकरण की-स्लेट, पुस्तक, ठवणी, कवली, नोकरवाली, सापड़ा, सापड़ी आदिकी-और लिखित व मुद्रित पुस्तकों की प्रन्यनीकता यानी आसातना करने से और उसके विषय में विचार करने से आस्त्रव होता है। इसीतरह जिससे विद्या सीखी हो या सीखने में मदद ली हो उसके बजाय दूसरे का नाम बताने से, पदार्थ का स्वरूप जानते हुए भी गुप्त रखनेसे, ज्ञान, ज्ञानोपकरण और ज्ञानवान का शस्त्रादि द्वारा नाश करने से इनके प्रति घृणा भाव रखनेसे; ज्ञानाभ्यास करनेवाले विद्यार्थियों को मिलते हुए अन्न, जल, वस्त्र और निवासस्थान आदि में अन्तरायभूत बननेसे, अध्ययन करते हुए विद्यार्थी को कार्योतर में लगाने से, उन्हें विकथादि करने में नियुक्त करने से, पठित पुरुष पर जातिहीनता का असंभाव्य कलंक लगाने से, उन्हें द्वेषभाव से प्राणान्त कष्ट पहुँचाने से, अस्वाध्याय के समय स्वाध्याय करने से, योगोपधानादि अविधि से करने से; ज्ञानोपकरण के पास रहते हुए भी आहार, निहार, कुचेष्टा मैथुनादि कर्म करने से, ज्ञानोपकरण को पैर लगाने से, थूक से अक्षर निगाड़ने से, ज्ञानद्रव्य भक्षण करने से, कराने से और करनेवाले