________________ (471) 9, अनुमोदित कायरिंम 10 , कृतमनः समारंभ , कारितमनःसमारंभ 12 , अनुमोदित मनःसमारंभ ,, कृतवचन समारंभ 14 , कारितवचन समारंभ " अनुमोदितवचनसमारंभ 16 , कृतकाय समारंभ 17 , कारितकाय समारंभ 18 ,, अनुमोदितकायसमारंम 19 , कृतमनआरंभ 20 , कारितमनआरंभ 21 , अनुमोदितमनआरंभ 22 , कृतवचनारंभ 23 , कारितवचनारम 24 , अनुमोदितवचनारंभ 25 , कृतकायरिंभ 26 , कारितकायारंभ 27 , अनुमोदितकायारंभ इसीतरह क्रोध के स्थान में, मान, माया और लोभ को रखकर गिनना चाहिए। इसतरह गिनने से 27 क्रोधके, 27 मानके, 27 मायाके और 27 लोमके सब मिलाकर 108 भेद जीवाधिकरण के होते हैं / अजीवाधिकरण आस्रव के मूल भेद चार और उत्तरभेद ग्यारह हैं। मूल चार भेद ये हैंनिर्वर्तना, निक्षेप, संयोग और निसर्ग / निर्वर्तना के दो भेद हैं-मूलगुणनिर्वर्तनाधिकरण और उत्तरगुणनिर्वर्तनाधिकरण / पाँच शरीर, मन, वचन और श्वासोश्वास मूलगुणनिवर्तनाधिकरण हैं और काष्ठ, पुस्तकादि के अंदर के चित्रकर्मादि उत्तरगुणनिर्वर्तनाधिकरण हैं / दूसरे निक्षेपाधिकरण के चार भेद हैं / १-जमीन या अन्य किसी आधेय पदार्थ पर देखे विना