________________ ( 463) से दुखी होते हैं। उनका ज्यादा से ज्यादा तेतीस सागरोपम का और कमसे कम दस हजार बरस का आयुष्य होता है। देव मूल चार प्रकार के हैं, परन्तु उनके उत्तर भेद 198 होते हैं। कई देव उच्च जाति के हैं और कई नीच जाति के भी हैं / और तो क्या, नीच जाति के देवों के परों की जूती भी इतनी कीमती होती है, कि उसकी कीमत सारे जंबूद्वीप की ऋद्धि के बराबर की जा सकती है, तो फिर उनकी दूसरी ऋद्धि का वर्णन तो सर्वज्ञ के सिवा अन्य कर ही कौन सकता है ? इतनी ऋद्धि समृद्धि के होते हुए और शाश्वत देवलोक के विमानों की भोग सामग्री का उपभोग करते हुए भी देव दुखी समझे जाते हैं। इसका कारण मोहदशा और उससे उद्भवित ममत्वभाव ही है। च्यवन के छः महीने पहिले ही उनको उसके चिन्ह दिखाई देते हैं। यानी कल्पद्रुम से उत्पन्न हुई हुई फूलमाला को अपने मुखकमल सहित मलिन हुई देखते हैं / उन्हें मालूम होता है कि मानो उनके अवयव शिथिल हो गये हैं। वे कल्पवृक्षों कोजिनको बड़े बड़े मल्ल भी नहीं हिला सकते हैं-काँपते हुए देखते हैं। उन्हें उनकी जन्म सहचारिणी शोभा और लज्जा दूर होती दिखाई देती है। वे अदीन होने पर भी दीनता धारण करते हैं। . निद्रा रहित होने पर भी उन्हें निद्रा आने लगती है। निरोग होने पर भी उनके शरीर की संधियाँ उन्हें टूटती हुई मालूम होती हैं / पदार्थों को देखने में असमर्थ बनते हैं और जैसे मर