________________ (567) को भोगादि विषयों में जाने से रोकने का नाम योगानव है। भवतास्रव पाँच, कषायास्रव चार, इन्द्रियात्रव पाँच और योगासब तीन हैं। ऐसे सब सत्रह आस्रव हुए / इन्हीं के साथ 25 क्रियास्रव जोड़ देने से 42 होते हैं। ये ही 42 आखव के प्रकार हैं। क्रियास्त्रव के लिए हम यहाँ पर 25 क्रियाओं का कुरा विवेचन करेंगे / १-शरीर को अप्रभत भावों से-उपयोगरहित सक्रिय बनने देना; कायिकी क्रिया है। २-शस्त्रादि के द्वारा जीवों की हिंसा करने को अधिकरणिकी क्रिया कहते हैं / ३-जीव और अजीव पर द्वेषभाव रखना; उनके लिए खराब विचार करना, प्रादेषिकी क्रिया है। ४-जिस. कृति से स्वपर को परिताप उत्पन्न होता है उसे परितापिकी क्रिया कहते हैं। ५-एकेन्द्रियादि जीवों को मारना अथवा मरवाना प्राणातिपातिकी क्रिया है। ६-खेती आदि आरंभ का कार्य करना आरंभिकी क्रिया है / ७-धन, धान्यादि नौ प्रकार के परिग्रह पर ममत्व रखना; परिग्रहिकी क्रिया है / ८-छल कपट से दूसरे को उगना मायाप्रत्ययिकी क्रिया है। ९-सस्य मार्ग पर श्रद्धा न रख असत्य मार्ग का पोषण करना मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया है। १०-भक्ष्याभक्ष्य वस्तुओं का नियमन करने से जो पाप लगता है वह अप्रत्याखानकी क्रिया है। ११-सुंदर वस्तु को देख कर उस पर रागमावों का उत्पन्न करना दृष्टिकी