________________ (460) जरा घबराकर, ब्राह्मण को अपने पास बुलाया। ब्राह्मण के आते ही सेठने कहा:-" जल्दी कह / क्या काम है ? मुझे फुर्सत न होने पर भी तेरी हठ से तुझ को मिलने बुलाया है।" ब्राह्मण सेठ के वचन सुनकर थोड़ा बहुन तत्त्व समझ गया / फिर भी उसने अपने आपको विशेष रूप से संतोष देनेके लिए कहा:-" मुझ पर एक संत प्रसन्न हुए हैं। उन्होंने मेरी इच्छानुकुछ मुझ को देने के लिए कहा है। मैंने दुनिया में जो सबसे ज्यादा सुखी हो, उसी कासा सुख माँगने की इच्छा कर, महात्मा से छः मास की अवधी ली / महात्माने दी। फिरता हुआ मैं तुम्हारे दर्वाजे पर पहुँचा / तुम्हारा ठाठ बाट देखकर, तुम्हारा ही सुख माँगने की इच्छा हुई। फिर तुमसे मिलकर ही तुम्हारा सुख माँगने की ईच्छा हुई। इसलिए तुमसे मिलना चाहता था।" सुनकर सेठने कहा:-" भूलकर के भी मेरा मुख मत माँगना / मुझे लेशमात्र भी सुख नहीं है / मैं तो अत्यंत दुःखी हूँ।" इस प्रकार के सेठ के यथार्थ वाक्य सुन, ब्राह्मण हतोत्साह हो गया। वह वहाँसे रवाने होकर महात्मा के पास गया और उनके पैरों पर गिरकर बोला:-" महाराज मैं तो आपही का सुख चाहता हूँ।" साधुने तयास्तु कहा / ब्राह्मण अन्य लोगों की अपेक्षा सुखी हो गया / " ___इस कथा से सिद्ध होता है कि, संसार में साधु के सिवा और कोई सुखी नहीं है। .