________________ (458) ज्ञानी, ध्यानी और उत्तमवंशी बताकर प्रसन्नतापूर्वक पढ़ाते हैं। ब्राह्मणों की पंडितों की-ऐसी दुर्दशा देखकर, ब्राह्मण वहाँसे व्यापारी वर्ग का अनुभव करने के लिए बाजार में गया। वहाँ उसने अनेक प्रकार के व्यापारियों को अनेक प्रकार के दुःख उठाते देखा / ब्राह्मण एक बहुत बड़े साहुकार की हवेली पर पहुँचा / दर्वाजे पर हथियारबंध सिपाही पहरा दे रहे थे। हाथी, घोड़े, रथ, पालकी आदि सवारियाँ इधर उधर अंदर तबेलों में पड़ी हुई थीं / लोग सेठ के गुणगान कर रहे थे। भाट चारण विरदावली बोल रहे थे / और आशीर्वाद दे रहे थे कि-"कुल की वृद्धि हो; तुम्हारी सदा जय हो" आदि / इस तरह का ठाठ बाट देख ब्राह्मण को कुछ संतोष हुआ। वह विचारने लगा कि, संसार में सुखी तो यही है। इस लिए मैं जाकर उसी सेठ का सुख माँगें। थोड़ी देरमें उसने और सोचा,-चलो एकवार सेठ से तो मिल लूँ। फिर महात्मा के पास जाऊँगा / सोचकर वह अंदर जाने लगा। चौकीदारने उसको रोका और पूछा:-" अंदर क्या काम है ! " ब्राह्मणने उत्तर दिया:-" सेठ से मिलना है।" चौकीदारने कहा:-" ठहरो। हम सेठ को खबर देते हैं।" ब्राह्मण दर्वाजे पर खड़ा रहा। चौकीदारने अंदर जाकर कहा:" सेठजी एक ब्राह्मण आपसे मिलने आया है। " सेठने यह सोचकर कि कोई भिखारी होगा, कह दिया कि, कहदो अभी फुरसत नहीं है / सिपाहीने वापिस आकर ब्राह्मण से कहा कि