________________ (457 ) उनके पीछे आधि, व्याधि और उपाधि लगी ही रहती है। यहाँ हम एक ब्राह्मण का उदाहरण देते हैं, उससे हमारे कथन की पुष्टि होगी। ___“किसी ब्राह्मण के ऊपर एक महात्मा प्रसन्न हुए। उन्होंने ब्राह्मण से कहाः-" जो माँगेगा वही मैं तुझको दूंगा।" ब्राहगने उत्तर दिया:-" महाराज मुझ को छः महीने की अवधि दीजिए / इस अवधि में मैं देखुंगा कि संसार में सुखी कौन है ? यह जानकर फिर मैं माँगूंगा।" साधुने कहा:" जा अनुभव कर फिर आना।" अब ब्राह्मण अनुभव करने को खाना हुआ। पहिले वह राजवंशी पुरुषों में गया / वहाँ रहने पर उसको अनुभव हुआ कि, अमुक अमुक की मृत्यु चाहता है और अमुक अमुक को मारने के लिए अमुक लालच देता है। वे परस्पर में विश्वास नहीं रखते हैं और न एक दुसरे का भेजा हुआ भोजन ही करते हैं। ऐसी दशा देख, ब्राह्मण उन्हें छोड़कर पंडितों में गया / और उनकी सेवा करने लगा / थोड़े दिनों के बाद उसे ज्ञात हुआ कि वे एक दूसरे की कीर्ति को नहीं सहसकते हैं। वादविवाद करने में क्लेश करते हैं; शास्त्र व्यवस्था देने में पक्षपात करते हैं; वादि के भयसे रात दिन शास्त्रों के देखने में लगे रहते हैं, सुखी होकर भोजन भी नहीं करते छात्रों को पढ़ाने से उपकार होता है, परन्तु वे उसमें प्रसन्न नहीं होते। हाँ यदि कोई उन्हें पैसे देता है तो वे उसको