________________ (449) आदि कई जीव ऐसे हैं जो दिखते नहीं हैं और आसनादि के नीचे दबकर मर जाते हैं / १८-चतुरेन्द्री बने हुए मधुमक्षिकादि जीवों को शहद के लोभी जीव लकड़ियों और पत्थरों से मार देते हैं / १९-पंखे आदि से डाँस, मच्छर आदि नीव ताडित होते हैं और करोलिया आदि जीवों को गरोली आदि जीव भक्षण कर जाते हैं। २०-जो जीव पंचेन्द्री होते हैं उनके तीन भेद हैं / जलचर, स्थल वर और खेवर। उनकी दगा इस प्रकार की होती है / जलचर जीव एक दूसरे को खाने के लिए उद्यत रहते हैं / मच्छीमार लोग उनको पकड़ते हैं और बगुले आदि मांसाहारी उनको जीतेही निगल जाते हैं / २१-चमड़ी के लोभी उनकी चमड़ी उतार लेते हैं / जंगली लोग पकड़ कर उनका भुर्ता बनाते हैं / खाने के लोलु। उनको पकाकर खाते हैं और चरबी के लोभी उनको, गलाकर उनमें से चरबी निकाल लेते हैं। २२-स्थलचर जीवों की ऐमी दशा होती है कि, सिंह वगेरा विशेष बलवान जीव मृगादि दुबल जीवों को खा जाते हैं। २३-मांस की इच्छा से और क्रीड़ा के लिए भी शिकारी लोग बेचारे निरपराध पशुओं को मार डालते हैं। २४-भूख, प्यास, सरदी, गरमी, अतिभार, चाबुक, अंकुश, आदि की वेदना घोड़े, हाथी और बैल सहन करते हैं। २५-तीतर, कबूर, सूए और चिड़ियाँ आदि खेचर जीवों को श्येन, गीध आदि मांसभक्षी जीव खाजाते हैं। २६-मांस लोलुप 29