________________ ( 450) चिडिमार नाना प्रकार के उपायों द्वारा, पक्षियों को पकड़ते हैं और उन्हें मार डालते हैं। २७-पशुओं को, अग्नि, पानी और शस्त्रादि का भय सदा बनाही रहता है। इसका कारण उनका कर्मबंध ही है। उनको कितना दुःख होता है सो म यहाँ कहा ही जा सकता है और न सर्वज्ञ के सिवा उसका पूरा विवेचन कोई कर ही सकता है ? . उक्त बातों पर जरा विशेष रूपसे प्रकाश डाला जायगा / मनुष्य नारकी और देवों को छोड़कर एकेन्द्री से पंचेंद्री तक सब जीव तियच हैं। उनके 48 भेद हैं। उनमें से 22 भेद एकेन्द्रिय जीवोंके हैं। शेष छब्बीस भेद रहे / उनमें से 20 मेदवाले जीव अन्योन्य भक्षक हैं। बाकी छ: द्वीन्द्री, त्रीन्द्री और चतुरिन्द्री अन्योन्य भक्षक नहीं हैं, परन्तु वे अन्य भक्षक हैं। जैसे कीड़ी कीड़ी को नहीं खाती इससे वे अन्योन्य भक्षक नहीं। मगर कीड़ी इल्ली को खाती है, इसलिए वह अन्यभक्षक है। कहा जाता है कि-" जीवो जीवस्य भक्षणम् " (जीव जीवका भक्षण है।) इससे यह बात समझ में आती है कि संसार मच्छ गलागल है। यानी एक मच्छ जैसे दूसरे मच्छ को खा जाता है वैसे ही सारे संसार की दशा है / जीवों का जीवन सर्वत्र भयग्रस्त है। जीव ऐसा समझते हैं, तो भी वे अपनी रक्षा करने में प्रयत्न के करोलिये की तरह स्वयमेव फँस जाते हैं। करोलिया गरोली के भयसे, अपनी राल अपने शरीर पर लपेट