________________ मोक्ष प्राप्त होता है / यदि कोई प्रश्न करे कि-" देव भी मनुष्य गति चाहते हैं और श्रेष्ठ मनुष्य भी देवगति की इच्छा रखते हैं, इससे मनुष्य और देवगति वांछनीय है। फिर तुम उनका त्याग कैसे अच्छा बताते हो ? इसके उत्तर में हम इतनाही कहेंगे कि मनुष्यगति और देवगति दुःख मिश्रित हैं। इसलिए वे हेयछोड़ने योग्य हैं और मोक्षगति निराबाध है, इसलिए उपादेय है-ग्रहण करने योग्य है। मनुष्यगति कैसे दुःखमिश्रित है, इसके लिए आचार्य महाराज फरमाते हैं: मनुष्यगति के दुःख / मनुष्यत्वेऽनार्यदेशे समुत्पन्नाः शरीरिणः / तत्तत्पापं प्रकुर्वन्ति वद्वक्तुमपि न क्षमम् // 1 // उत्पन्ना आर्यदेशेऽपि चाण्डालश्वपचादयः / तत्तत्पापं प्रकुर्वन्ति दुःखान्यनुभवन्ति च // 2 // परसम्पत्प्रकर्षेणापकर्षेण स्वसंपदाम् / परप्रेष्यतया दग्धा दुःखं जीवन्ति मानवाः // 3 // रुग्जरामरणैस्ता नीचकर्मकदार्थताः / तां तां दुःखदशां दीनाः प्रपद्यन्ते दयास्पदम् / / 4 // जरारुनामृतिर्दास्पं न तथा दुःखकारणम् / गर्भे वासो यथा घोरनरके वासनिमः // 5 //