________________ ( 197) बात सत्य न समझी। इस लिए, हम आप की परीक्षा के लिए यहाँ आये / यद्यपि उत्तम पुरुष परीक्षणीय नहीं होते हैं; तथापि हमारे समान अल्पज्ञों को प्रत्यक्ष देखे विना विश्वास नहीं होता है इसी लिए इतनी धृष्टता की थी।" फिर उन्हों ने मुनि के शरीर पर जो विष्टा रूप पुद्गल थे उनको सुगंधित चन्दन के रूप में बदल, मुनि को प्रणाम कर, निज देवलोक को प्रयाण किया / तत्पश्चात् मुनि समभाव सहित, हर्षशोक विहीन-समानभाव सहित उपाश्रय में जा, मास क्षमण का पारण कर धर्म-ध्यान में लीन हुए।" उक्त जो दृष्टान्त दिया गया है, वह इस बात को पुष्ट करता है कि, शान्ति के साथ किया गया तप ही वास्तविक फल का देनेवाला होता है / शान्ति के साथ तपस्या करनेवाले साधु ही कर्मों को क्षय कर सकते हैं / इसी लिए भगवान फर्माते हैं किः सउणी जह पंसुगुंडिया विहुणिय धंसयइ सियं रयं / एवं दविओवहाणवं कम्म खवइ तवस्सी माहणे // 15 // भावार्थ-जैसे पक्षी अपनी शरीर पर लगी हुई धूल को पंख फड़फड़ा कर दूर कर देते हैं, वैसे ही मुक्ति गमन योग्य