________________ ( 276 ) भावार्थ-तत्वों को जाननेवाले कहते हैं कि–पहिले के भोगे हुए कर्मों का विचार न कर, भविष्य के लिए विषय-प्राप्ति की अभिलाषा न कर और माया को दूर कर / जो मनुष्य दुष्ट मनसहित विषयाधीन नहीं होते हैं, वे सर्वोत्तम समाधि धर्म को जानते हैं / गोचरी के लिए गये हुए साधु को गृहस्थों के घरमें बातचीत नहीं करनी चाहिए / उसको प्रानिक भी नहीं बनना चाहिए / यानी कोई प्रश्न पूछे तो उसका उत्तर न दे कर कहना चाहिए कि, गुरु आदि भली प्रकार से इसका उत्तर देंगे / यदि कोई चीजों के भाव के लिए पूछे या पानी के लिए पूछे तो उसका भी उत्तर नहीं देना चाहिए / श्रीतराग के धर्म को सर्वोत्कृष्ट समझ, साधु को चाहिए कि, वह सम्यग् अनुष्ठान में तत्पर होवे और शरीरादि में ममत्वभाव न रक्खे / इस सामान्य नियम को सब ही समझते हैं कि जिस पदाथ का चिन्तवन करने से या जिसको देखने से मनोवृत्ति विपरीत हो उस पदार्थ का न विचार करना चाहिए और न उसको देखना ही चाहिए। खास करके शब्दादि विषय आत्म शत्रु हैं। वे शाश्वत आत्म-ऋद्धि के चोर हैं इसलिए उन पर थोडासा भी दृष्टिपात नहीं करना चाहिए। उनका स्मरण भी नहीं करना चाहिए / इस बात की भी सावधानी रखनी चाहिए कि भविष्य में उनका संबंध न हो / माया और आठ तरह के कर्मों को