________________ ( 337 ) अब तो रात हो गई है। फिर थोडी देर गपशप कर अपने शयनमंदिर में गया / रात को दस बजे के करीब अकस्मात आकाश में बादलों की त्रासदायक घोर गर्जना होने लगी; बिजलियाँ चमकने लगीं / जोरसे आँधी आई / जीर्ण घर जमीं दोज होने लगे / समुद्र को कलोले शैल शृंग की उपमा को धारण करने लगे / नौकाएँ और जहाज जो बंदरों में पड़े थे वे भी-झूले की तरह झूलने लगे / थोड़ी देर में तो वे बाँधे हुए बंधनों से मुक्त होकर बंदर के बहार निकल गये / खिलाड़ी सेठ का माल निस महान में भरा हुआ था, वह जहान भी बंदर में से निकल कर, समुद्र में क्रीडा करने लगा / मानो वह यह बता रहा था कि, सेठ यदि क्रीडा करता है तो मैं भी क्यों न करूँ ? इस तरफ़ सेठ की नींद उड़ गई / वह बड़ी चिन्ता में पड़ा / उसने सोचा,-" जहाज का माल ऐसी हालत में कैसे बचेगा ? यदि बच जायगा तो मैं एक लाख रुपये का दान गरीब लोगों को दूंगा; एक लाख रुपये देवमक्ति में लगाऊँगा; एक लाख रुपये गुरुभक्ति में खर्चुगा; एक लाख रुपये धर्मोन्नति में लगाऊँगा ओर एक लाख रुपये विद्यार्थी वर्ग की सहायतार्थ व्यय करूँगा / ऐसे पाँच लाख रुाये पुण्यकाय में लगाऊँगा / हे प्रभो ! हे शासनदेवो ! किसी तरह मेरे जहाज की रक्षा करो।" सेठ इधर इस तरह विचासागर में गौते लगा रहा था। इतनेही में साढ़े ग्यारह बजे घबराये हुए जहाज रक्षक आये और कहने 22